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पुष्पचूला बोली- "महाराज ! जिस रास्ते अचित (अपकाय ) . पानी पड़ता था, उस रास्तेसे मैं गौचरी लेकर आयी हूँ । इसलिये जिनागमके अनुसार कोई अनुचित नहीं; क्योंकि उसमें इस बातका प्रायश्चित भी नहीं है ।"
सूरीश्वर बोले, - " भद्रे ! अमुक रास्ते सवित ( अपकाय ) पानी और अमुक रास्ते अचित (अपकाय ) पानी बरसता है, यह ज्ञान तुझे किस तरह हुआ ? कारण, कि यह बात बिना अतिशय केवल ज्ञानके नहीं मालूम हो सकती ।"
पुष्पचूलाने कहा, “ महारज ! मुझे आपकी कृपासे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ हैं । इसीसे मैं सब कुछ जानती हूं।" यह सुनकर आचार्य महाराजके मन में केवल ज्ञान प्राप्त करनेकी लालसा उमड़ आयी और वे सोचने लगे कि देखे, मुझे इस भवमें केवल ज्ञानकी प्राप्ति होती है या नहीं ?
पुष्पचूला इस बात को समझ गयी, और बोली, – “हे मुनिपुङ्गव ! आप अधीर न हों गंगा नदी उतरते हुए आपको भी इसी भवमें केवल ज्ञान प्राप्त होगा ।
यह सुनकर आचार्य महाराज गंगा उतरनेके लिये कुछ लोगो के संग चल पड़े। वे जब नावपर सवार हुए तो वे जिस और बैठे थे, उसी ओरसे नाव डूबनेको हो जाती थी। इसीलिये वे उन सब आदमियोंके बीच में बैठ गये । तब तो सारी नाव ही डबने लगी । - यह देखकर उन सब लोगोंने विचारा. कि इस साधु महारजके ही कारण नात्र डूब रही है। अतएव इस महात्माको