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(१४ ) आचार्य महाराज 'तथास्तु' कहकर अपने स्थानपर चले गये। और रानी पुष्पचूलाने अपने पतिके पास जाकर दीक्षा ग्रहण करनेका आग्रह किया। राजाने कहा,— “एक तरहसे मैं तुम्हें दीक्षा ग्रहण करनेकी आज्ञा दे सकता हूँ, अन्यथा नहीं, वह यह है, कि दीक्षा लेकर हमेशाही तुम मेरे घर अन्न-जल ग्रहण करो, दूसरेके घर न माँगा, तो मैं आज्ञा
... . रानीने यह बात मजूर कर ली और बड़े हर्षसे अग्निका पुत्रावार्यके पास जा दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद पुष्प चला गुरुमहाराजको दो हुई शिक्षाको भलि-भाँति ग्रहण करती हुई गुरु महाराजकी पर्युपासना करने लनी। एक दिन मुक्ति सम्पदाका निदान भून केवल ज्ञान पुष्पचूलाको प्राप्त हो गया; किन्तु केवल ज्ञान होनेपर भी वह गुरु महाराजकी वैसी ही भक्ति करती रही, जैसी पहले करती थी। केवल-ज्ञानको धारण करनेवाली साध्वी पुष्पचला गुरु महाराजके बिना कहे, उनकी इच्छाके अनुसार भोजनादिका प्रबन्ध कर दिया करती थी। इससे गुरु महाराज बहुत ही आश्चर्य किया करते थे। एक दिन पुष्पचूला वृष्टि होते समय गौचरी लेकर आ रही थी। जब वह उपाश्रयमें आ गई, तब गुरु महाराजने देखकर कहा,-"भद्रे श्रुतज्ञानको पढ़कर एवं जान कर भी तूने यह क्या किया? बरसातमें साधु-साध्वोको मकानसे बाहर निकलने की मनाई है, इसलिये तुझे ऐसा करना उचित न था।"