Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 446
________________ ३९१ एकोनविंशं पर्व मुरारिरपि नेमीशमभ्येत्य पुरतः स्थितः । अप्राक्षीरिक्षप्रमात्मीयं जयं शत्रुक्षयोद्भवम् ॥१३ नेमिनम्रामराधीशो विष्णुमोमित्यभाषत । स्मिताद्यैः स्वजयं ज्ञात्वा योद्धं विष्णुः समुधयौ ॥ बलनारायणौ राजा समुद्रविजयो जयी । वसुदेवोऽप्यनावृष्टिधर्मपुत्रश्च भीमकः ॥१५ अर्जुनो रौक्मिणेयश्च धृष्टद्युम्नस्तु सत्यकः । जयो भूरिश्रवा भूपौ सहदेवश्च सारणः ॥१६ हिरण्यगर्भ इत्याख्यः शम्बोऽक्षोभ्यो विदूरथः । भोजः सिंधुपतिर्वज्रो पदः पौण्ड्रभूपतिः ।। नागदो नकुलो वृष्टिः कपिलः क्षेमधूर्तकः । महानेमिः पद्मरथोऽक्रूरो निषधदुर्मुखौ ॥१८ उन्मुखः कृतवर्मा च विराटश्चारुकृष्णकः । विजयो यवनो भानुः शिखण्डी सोमदत्तकः ॥१९ बाल्हीकप्रमुखाश्चेलुयोदवानां महानृपाः । युद्धे संबद्धकक्षास्ते विपक्षक्षयकारकाः ॥२० । दुर्योधनं समाप्राप्य जरासंधवचोहरः । नत्वा प्रोवाच वागीशो यथादिष्टं सुचक्रिणा ॥२१ येनास्तो दुर्धरः कंसो बुधश्चक्रिसुतापतिः । चाणूरचूर्णितो येन मुष्टिघातेन सद्भली ॥२२ . गोवर्धनं धराधीशं समुद्दधेऽहिमर्दकः । गोपालः स क्षितौ ख्यातमहावक्षाः सुरक्षकः ॥२३ श्रीकृष्णसे कहा, कि शत्रुओंको विध्वस्त करनेवाला महाक्षोभ जरासंधके मनमें उत्पन्न हुआ है ॥ १२ ॥ मुरारि-श्रीकृष्ण भी नेमिप्रभुके पास आकर उनके आगे खडे हो गये। और पूछा कि शत्रुका क्षय होकर क्या मुझे विजय प्राप्त होगा ? ॥ १३ ॥ जिनको देवोंके स्वामी इन्द्र नत होते हैं ऐसे नेमिप्रभुने 'ॐ' ऐसा शब्द उच्चारकर उत्तर दिया। अर्थात् तुझे विजयप्राप्ति होगी ऐसा उत्तर दिया । नेमिप्रभुका मंदहास्य, उनकी मनःप्रसन्नता इत्यादि कारणोंसे अपना विजय होगा ऐसा जानकर विष्णुराजा युद्धके लिये उद्युक्त हुआ ॥ १४ ।। बलभद्र और श्रीकृष्ण, जयशील समुद्रविजय, वसुदेव, अनावृष्टि, धर्मराज, भीम, अर्जुन, रुक्मिणीका पुत्र प्रद्युम्न, धृष्टद्युम्न, सत्यक, जय और भूरिश्रवा ये दो राजा, सहदेव, सारण, हिरण्यगर्भ नामक राजा, शंब, अक्षोभ्य, विदूरथ, भोज, सिंधुपति, वज्र, द्रुपद, पौंड्रदेशका राजा, नागद, नकुल, वृष्टि, कपिल, क्षेमधूर्तक, महानेमि, पद्मरथ, अक्रूर, निषध, दुर्मुख, उन्मुख, कृतवर्मा, विराट, चारुकृष्ण, विजय, यवन, भानु, शिखंडी, सोमदत्तक, बाल्हीक इत्यादिक प्रमुख यादवपक्षीय महाराजा थे। वे सब युद्धके लिये कटिबद्ध हुए अर्थात् युद्धकी तैयारी उन्होंने खूब की । ये सब शत्रुका क्षय करनेवाले थे ॥ १५-२० ॥ जरासंध. राजाने युद्धमें साहाय्य करनेके लिये तुम सेनाके साथ आओ ऐसा दूतके द्वारा दुर्योधनको कहा। दुर्योधन अपनी महासेनाके साथ आकर जरासंध राजाको मिला। जरासंधका वाक्चतुर दूत दुर्योधनके पास आकर नमस्कार कर उसे चक्रवर्तीने जैसा बोलने का आदेश दिया था बोलने लगा। उसका कथन इस प्रकारका था-"जिसने चक्रवर्ति जरासंधकी कन्याका पति विद्वान् कंस मारा है, जिस उत्तम बलवान कृष्णने मुष्टिओंके प्रहारसे चाणूरको चूर्ण किया। कालियसर्पका मर्दन करनेवाले जिसने गोवर्धन नामक पर्वत अपने हाथसे उठाया था, जो गोपाल नामसे पृथ्वीमें प्रसिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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