Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 513
________________ ४५८ पाण्डवपुराणम् ततस्ते: स्यन्दनैः षड्भिर्देवदत्तः सुवेगिभिः । पयश्चारिभिराभेजुः पुरीं ककाभिधा क्षणात् ॥ हरिणा सह सिंहा वा जगर्जुः पञ्च पाण्डवाः । सज्जं शाङ्ग व्यधाद्विष्णुष्टङ्कारारावसंकुलम् ।। भीमेन प्रामिता तूर्ण गदा विद्युल्लता यथा । नकुलेन तदाग्राहि कुन्तो द्विट्कृन्तनोद्यतः॥ पाणौ कृतः कृपाणस्तु सहदेवेन दीप्तिमान् । सन्जिता सत्वरं शक्तिर्धर्मपुत्रेण जित्वरी॥१२५ तदा धनंजयः प्राह नत्वा धर्मसुतं क्षणात् । वारयिष्याम्यरि यूयं सर्वे तिष्ठत निश्चलम् ॥ . इत्युक्त्वा पूरयित्वा स शङ्ख कोदण्डपाणिकः । दधाव देवदत्ताडं पार्थः सद्रथसंस्थितः।।१२७ हरिणा पूरितः पाञ्चजन्यो जयभयंकरः । तन्निशम्य पुराद्राजा निजेगाम बलोद्धतः॥१२८ रणतूर्येण तूर्ण स कुर्वश्च बधिरा दिशः। रेणुनाच्छादयन्व्योम युयुधे भूपतिर्बली ॥१२९ । पार्थेन जजेरीचक्रे पद्मनाभो महाशरैः। रणं हित्वा गतः पुयों दत्वा स विशिखां स्थितः॥ वैकुण्ठः कठिन पादप्रहारैस्तांन्यपातयत् । विविशुः पत्तनं सर्वे त्रासयन्तोऽखिलाञ्जनान्॥ भीमस्तु पातयामास गदया मन्दिराणि च । आददाविन्दिराः सर्वाः सुन्दरो मन्दरस्थिरः॥ अमरकंका नगरीको आगये ॥ १२०-१२२ ॥ [ पद्मनाभका शरण आना ] कृष्णके साथ आये हुए वे पांच पाण्डव सिंहके समान गर्जना करने लगे। टंकारध्वनिसे भरा हुआ शाङ्ग धनुष्य विष्णुने सज्ज किया। भीमने शीघ्र घुमाई हुई गदा विद्युल्लताके समान दीखने लगी। नकुलने शत्रुको तोडनेमें समर्थ कुन्त-भाला हायमें लिया। और सहदेवने अपने हाथमें तेजस्वी तरवार ग्रहण की। धर्मपुत्र युधिष्ठिरने जयशाली शक्तिनामक आयुध हाथमें लिया ॥ १२३-१२५ ॥ उस समय अर्जुनने धर्मसुतको-युधिष्ठिरको नमस्कार कर कहा, कि “ तुम सब निश्चल रहो। मैं एक क्षणमें शत्रुको हटा दूंगा।" ऐसा बोलकर धनुष्य जिसके हाथमें हैं, जो उत्तम रथमें बैठा है, ऐसा अर्जुन देवदत्त नामक शंख पूर कर रणभूमिकी तरफ दौडने लगा। श्रीकृष्णने लोगोंको भय उत्पन्न करनेवाला पांचजन्य नामक शंख का। उसका ध्वनि सुनकर बलसे-सैन्यसे उद्धत पद्मनाभराजा नगरके बाहर युद्धके लिये आया ॥ १२६-१२८॥ शीघ्र रणवाद्योंसे सर्व दिशाओंको बधिर करनेवाला और रेणुओंसे आकाशको आच्छादित करनेवाला वह पद्मनाभराजा लडने लगा। परंतु जब अर्जुनने महाबाणोंसे उसे जर्जर किया तब वह रण छोड़कर अपने नगरमें गया और नगरद्वार बंद करके बैठा। उस नगरद्वारको कठिन पादप्रहारोंसे विष्णुने तोड दिया और सब पाण्डवोंने सर्व लोगोंको भय दिखाते हुए नगरमें प्रवेश किया। भीमने तो गदाले सब मंदिरोंको तोड डाला। मंदरपर्वतके समान स्थिर सुंदर भीमने सर्व द्रव्य हरण किया। तब सब लोग भागने लगे, राजा भी भाग गया और दौडता हुआ, रक्षण करो रक्षण करो ऐसा कहता हुआ द्रौपदीको शरफ गया। "हे द्रौपदी, तेरे हरणसे जो मैंने पाप किया उसका फल मुझे भूमीशोंसे मिला" इस तरह वह बोलने लगा। इसके अनंतर " हे मूढचित्त, तुझे मैंने पूर्व में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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