Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 548
________________ । पञ्चविंशतितमं पर्व । शुभचन्द्राश्रितं पार्थ श्रीपालं पालितादिनम् । ननमीमि सुपार्थलभन्यवर्ग:सुपागम् ॥१ अथ ते पाण्डवा नत्वा नेमि नम्रनरामरम् । विज्ञप्ति चक्रिरे कृत्वा पाणिपचान्सामूर्धनि ॥२ ज्वलद्दाखमहादाहे देहव्यूहमहीरहे । करालकालगहने संशुष्यविषणाजले ॥३ नानादुर्णयदुर्मार्गदुर्गमे भयदे नृणाम् । अनेकतरदुःकर्मपाकसत्वे चरञ्जने ॥४ दुष्टभावविले भीमे संसारविपिने जनाः । बभ्रम्यते भयत्रस्ता विना स्वच्छरणं विभो ॥५ नानाजन्मजलौघेन ललिताशासमूहके । क्लेशोर्मिजालसंकीर्णे नानादुःकर्मवाडवे ॥ प्राप्ति की वे पाण्डव इस भूतलमें उत्तम विजयको प्राप्त होवें ॥ ९४ ॥ श्रीब्रह्म श्रीपालकी साहाय्यतासे श्रीभट्टारक शुभचंद्रजीने रचे हुए भारत नामक पाण्डवपुराणमें पाण्डव और द्रौपदीके भवान्तरोंका वर्णन करनेवाला चौवीसवां पर्व समाप्त हुआ ॥२४॥ [पञ्चीसवां पर्व] शुभचन्द्राश्रित उराम चंद्रने अर्थात् पौर्णिमा चन्द्रदेवने जिनका आश्रय लिया है अथवा शुभचन्द्र भट्टारकजीने जिनका आश्रय लिया है। अथवा पुण्यकर्मरूपी चन्द्रने जिनका आश्रय लिया है, जो श्रीपाल-समवसरणादि-लक्ष्मीका पालन करते हैं, जिन्होंने सन्मार्ग दिखाकर प्राणियोंको पालन किया है, जिनके उत्तम पक्षमें-स्याद्वादरूप अहिंसा-धर्ममें भव्यजन रहे हैं, जो अपने उच्चम पाोंमें विद्यमान हैं अर्थात् स्याद्वाद, अहिंसा, परिप्रहत्याग, रत्नत्रय इत्यादि धर्मके पाचोंमें-विभागोंमें हमेशा रहते हैं, ऐसे श्रीपार्श्वनाथ जिनेश्वरको मैं बारबार नमस्कार करता हूं॥१॥ [ नेमिप्रभुसे पाण्डव-दीक्षाग्रहण ] भववर्णन सुननेके अनंतर जिनको मनुष्य और देव नम्र हुए हैं ऐसे नेमिभगवानको नमस्कार कर तथा हस्तकमलोंको अपने मस्तकपर रखकर पाण्डव विज्ञप्ति करने लगे॥२॥ जिसमें प्रज्वलित दुःखरूपी महाज्वालायें इतस्ततः फेली हैं, जिसमें देहोंके समूहरूपी वृक्ष उत्पन्न हुए हैं, जो भयंकर मृत्युरूपी गुहासे युक्त है। जिसमें बुद्धिरूपी जल सूखता है, नाना कुमतोंके आचारमार्गसे जो दुर्गम हुआ है, मनुष्योंको जो भयंकर है, हिंसादिक अनेक दुष्कर्मही जिसमें क्रूर श्वापद हैं, जिसमें लोग घूम रहे हैं, दुष्ट परिणामरूपी बिलोंसे जो युक्त है ऐसे भयंकर संसाररूपी जंगलमें भयपीडित हुए सर्व जन हे विभो, संरक्षक आपके विना वारंवार भ्रमण कर रहे हैं ॥ ३-५ ॥ अनेक गतियोंमें जन्मरूपी जलप्रवाहसे जिसने दिशाओंका उल्लंघन किया है, जो अनेक दुःखरूप तरंगसमूहोंसे भरा हुआ है, और अनेक दुष्टकर्मरूपी वडवानल जिसमें हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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