Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 547
________________ इति पूर्वभवान्भन्या माविताजिननेमिना । निशम्य पाण्डवाबण्डा बभूवुः शान्तबानसा॥ इति शुभपरिभाषास्त्यक्तसंसारदावा, अधिगतजिनरावा मुक्तकारहावार । घरपरिणविपावाः कमेकेदारलावाः, जिनपतिकतहावाः सन्तु सिद्धथै सुधावाः ॥९२ कृत्वा ये सुचिरं सपो द्विजभवे लात्वा शिवं शोभनम् हित्वा दुप्कृतसंचयं परदिवि प्राप्यामरत्वं शुभम् । भुक्त्वा तत्र सुसातमुस्कटरसं प्राता नरत्वं नृपाः इत्वा वैरिगणं जयन्ति भवने ते पाण्डवाः पञ्च वै ॥९३ दुर्योध्यान्युधि कौरवान्परबलान्दुर्योधनादीन्नृपान् सान्स्वा संगरशालिनः सुरसमाः सद्यः श्रितास्ते हरिम् । तत्साहाय्यमुपाश्रिता वरसरिद्वाहं सुतर्तुं क्षमाः . . ये संवीर्य महाम्बुधिं बुधनुताः प्रापुः परां द्रौपदीम् ॥९४ इति श्रीपाडवपुराणे भारतनाम्नि महारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीते प्रमश्रीपाल साहाय्यसापेक्षे पाण्डवद्रौपदीभवान्तरवर्मनं नाम चतुर्विंशतितम पर्व ॥२४॥ नामके भाई हुए हैं ॥ ८९-९० ॥ इस प्रकारसे नेमिजिनेश्वरने कहे हुए पूर्वभवोंको सुनकर वे चण्ड पाण्डव शान्तचित्त हुए ॥९१ ॥ इस प्रकारसे जिन्होंने शुभ परिणाम धारण किये हैं, जिन्होंने संसाररूपी दावाग्निका-वनाग्निका त्याग किया है, जिन्होंने नेमिप्रभुके मुखसे दिव्यध्वनिद्वारा धर्मोपदेश सुना है, जिन्होंने कामक्रोधादिक विकार-भावोंको जलाञ्जलि दे दी है, जिन्होंने श्रेष्ठ शुद्ध परिणाम धारण कर स्वपरोंको पवित्र किया है, जो कर्मरूपी खेतको मूलसे काटनेवाले हैं तथा जिनपति नेमिप्रभुमें जिनकी भक्ति है ऐसे थे पाण्डव मुक्तिप्राप्तिके लिये हमें अमृतके समान होयें ॥ ९२ ॥ जिन्होंने ब्राह्मणपर्यायमें दीर्घकाल तक तप करके सुंदर पुण्यका संचय किया, जिन्होंने पापसमूहको छोडकर स्वर्गमें (अच्युतमें ) शुभ अमरपना-सामानिकदेवपद प्राप्त किया। जिसमें अतिशय आल्हादक स्वाद है ऐसा उत्तम स्वर्गसुख भोग करके जिन्होंने मनुष्यपना प्राप्त किया। ऐसे थे पांच राजा-पाण्डव इस भूतलपर शत्रुसमूहको मारकर निश्चयसे सर्वोस्कृष्ट जयको प्राप्त हुए हैं ।। ९३ ॥ जिनके साथ युद्ध करना कठिन था, जिनके पास उत्कृष्ट सैन्य था अथवा जिनमें परबल - विशाल सामर्थ्य था, ऐसे दुर्योधनादिक राजाओंको युद्धमें शोभनेवाले जिन्होंने ( पाण्डवोंने ) शान्त किया । जो देवके समान थे और शीघ्र जिन्होंने श्रीकृष्णका आश्रयपक्ष लिया था। श्रीकृष्णका साहाय्य प्राप्त कर जो श्रेष्ठ नदीसमूहोंको धारण करनेवाले लवणोद समुद्रको तीरनेके लिये समर्थ हुए तथा देव वा विद्वान् जिनको नम्र हुए हैं, जिन्होंने उत्तम द्रौपदीकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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