Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 572
________________ पञ्चविंशं पर्व श्रीमद्वाग्वरनीवृतीदमतुलं श्रीशाकवाटे पुरे । श्रीमच्छीपुरुधाम्नि वै विरचितं स्पेयात्पुराणं चिरम् ॥ १८७ तदहं शास्त्रं प्रवक्ष्यामि पुराणं पाण्डवोद्भवम् । सहस्रषद्भवेन्नूनं शुभचन्द्राय कथ्यते ॥ इति श्रीपाण्डवपुराणे भारतनाम्नि भ. श्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्मश्रीपालसाहाय्यसापेक्षे पाण्डवोपसर्गसहनकेवलोत्पत्तिमुक्तिसर्वार्थसिद्धि गमनवर्णनं नाम पश्चविंशतितमं पर्व ॥ २५ ॥ या सागवड नामक नगरमें श्रीसंपन्न आदिनाथ जिनमंदिरमें यह भारत अर्थात् पाण्डव-पुराण श्री शुभचंद्र भट्टारकजीने रचा है वह चिरंजीव रहें ॥ १८७ ॥ मैं पाण्डवोंका पुराण-शास्त्र कहता हूं। श्रोताओंको शुभ और आल्हादके लिये मैं उसकी छह हजार लोकसंख्या कहता हूं। ब्रह्म श्रीपालकी साहायतासे श्री भट्टारक शुभचंद्रजीने रचे हुए महाभारत नामक पाण्डवपुराणमें पाण्डवोंने कुर्यधर द्वारा किया हुआ उपसर्ग सहन किया, तीन पाण्डवोंको केवलज्ञान और मुक्तिकी प्राप्ति हुई, नकुल, सहदेव मुनियोंको सर्वार्थसिद्धिमें अहमिन्द्रदेवत्व प्राप्त हुआ इन बातोंका वर्णन करनेवाला पच्चीसवां पर्व समाप्त हुआ ॥२५॥ , प, ग आदर्शयोरयमधिकः श्लोक उपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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