Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 525
________________ पाण्डवपुराणम् ।त्रयोविंशं पर्व। नर्मि नौमि नतानेकनरामरमुनीश्वरम् । निर्जिताक्षं विपक्षान्तं सद्धर्मामृतदायकम् ॥१ जारसेयं पुरस्कृत्य पाण्डवा द्वारिका पुरीम् । समीयुः सह कुन्त्यायैः करुणाकान्तचेतसः ॥२ संवास तत्पुरीं पस्त्यैः प्रशस्तैः परमोदयैः। तत्र राज्ये जरापुत्रमस्थापयंश्च पाण्डवाः॥ पुरातनं स्मरन्तस्तु गोविन्दबलदेवयोः। प्राज्यं राज्यं बभूवुस्ते शोकशङ्कासमाकुलाः॥ अहो या निर्मिता देवैः पुरी भस्मत्वमागता । अदृश्यतामिता व्योमपुरीव नेत्रनन्दना ॥५ दशार्हाः परपूजार्हाः क गताः संगतोत्सवाः। अहो तो काटितौ रम्यावच्युताच्युतपूर्वजौ ॥६ रुक्मिण्यादिसुनारीणां निवासा नाकिनन्दनाः। क समीयुः सुतास्तासां हर्षोत्कर्षसमुन्नताः॥ अहो स्वजनसांगत्यं क्षणिक हादिनीसमम् । जीवितं च नृणां हस्ततलप्राप्तपयःप्रभम् ।।८ श्रीनेमिनाथका दीक्षाग्रहण, केवलज्ञानप्राप्ति, द्वारिका दहन, कृष्णपरलोकगमन और बलभद्रका दीक्षाग्रहण इतने विषयोंका वर्णन करनेवाला यह बाईसवां पर्व समाप्त हुवा ॥ २२ ॥ . [ तेई सवां पर्व ] अनेक मनुष्य देव और मुनियों के स्वामी जिनको वन्दन करते हैं, जिन्होंने इंद्रियां वश की है अर्थात् जो जितेन्द्रिय हैं, जिन्होंने कर्मशत्रुओंका नाश किया है जो भव्योंको सद्धर्मामृत देते हैं ऐसे श्रीनेमिनाथ जिनेश्वरकी मैं स्तुति करता हूं ॥ १॥ जिनका चित्त दयासे भरा हुआ है ऐसे पाण्डव जारसेयको जरारानीके पुत्र-जरत्कुमारको आगे करके अर्थात् उसके साथ द्वारकानगरीको आये। पाण्डवोंने अपने साथ कुन्ती द्रौपदी आदिकोंको लिया था ॥२॥ पाण्डवोंने प्रशस्त और उत्तम वैभवशाली ऐसे घरोंसे द्वारिका नगरीको वसाया और उसके राज्यपर उन्होंने जरत्कुमारकी स्थापना की ॥३॥ [दग्धद्वारावतीको देखकर पाण्डवोंके वैराग्योद्गार ] परन्तु श्रीकृष्ण और बलदेवके प्राचीन और उत्तम राज्यका स्मरण करनेवाले पाण्डव शोकसे और शंकासे-तर्क वितर्कसे व्याकुल हुए॥४॥ "अहो, नेत्रोंको आनंदित करनेवाली जो द्वारिका नगरी देवोंने निर्माण की थी, वह भस्म होकर नेत्रोंको रमणीय दीखनेवाली गंधर्व नगरीके समान अदृश्य होगयी। जो हमेशा उत्सवोंमें तत्पर रहते थे और जो अतिशय आदरके योग्य थे वे दशार्ह-समुद्रविजयादिक दश भ्राता कहां गये ? आश्चर्य है, कि वे सुंदर अच्युत-श्रीकृष्ण और अच्युत पूर्वज-श्रीकृष्णके ज्येष्ठ भाई-श्रीबलभद्र कहां गये हैं ॥५-६॥ रुक्मिणी,सत्यभामा आदि स्त्रियोंके देवोंको आनंदित करनेवाले महल कहां गये ? तथा उनके प्रद्युम्नादि पुत्र कहां गये ! जो हर्षके उत्कर्षसे उन्नत थे। अर्थात् उनको स्वप्नमें भी दुःखका स्पर्श नहीं हुआ था । खेदकी बात है, कि यह स्वजनोंकी संगति बिजलीके समान क्षणिक है । तथा मनुष्योंके जीवित हाथके तलमें स्थित पानीके. समान हैं अर्थात् जैसे हाथके तलमें लिया हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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