Book Title: Pandava Puranam
Author(s): Shubhachandra Acharya, Jindas Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 505
________________ ४५० पाण्डवपुराणम् नारदो भूमिपालाय तद्रूपं पट्टसंगतम् । दर्शयामास संदीप्तं दीप्तिनिर्जितभास्करम् ।।३३ क्षितीशो वीक्ष्य पट्टस्यां योषां तां कनकोज्ज्वलाम् । हारिहारसुवक्षोजामचिन्तयदिति स्फुटम् ॥ केयं शुचिः शची स्वर्गात्समायाताब्जसद्मतः । पद्माथ रोहिणी प्राप्ता सूर्यपत्नी भुवं गता ॥ किन्नरी खचरी वाहो कामपत्नी गुणात्मिका । इत्यात विकल्पेनेयं किं मोहनवल्लिका ॥ चिन्तयन्निति भूमीशो मुमूर्च्छ मोहसंगतः । तदा हाहारवैर्युक्ता नृपास्तत्र समागताः ॥३७ कथं कथमपि प्राप्तवेतनां चिन्तनोद्धुरः । विधातृपुत्रमानम्याप्राक्षीत्पृथ्वीश्वरस्तदा ॥३८ केयं पट्टगता तात वर्णिनीवरवर्णिनी । सविभ्रमा महारूपा विश्रमभ्रूभ्रमानना ||३९ यथोक्तं भण भव्येश मम निश्चयकारणम् । तदागदीद्विधेः सूनुः समाकर्णय भूपते ||४० शुश्रूषा तव चेदस्ति पट्टरूपस्य पार्थिव । वदामि तर्हि ते चित्तं सुस्थितं च यतो भवेत् ॥४१ मध्येद्वीपं महाद्वीपो जम्बूनामा मनोहरः । वृत्तेन निर्जितचन्द्रस्तथा योगी च येन वै ॥ ४२ तन्मध्ये मन्दरो दीप्तः सुदर्शनसमाह्वयः । लक्षयोजनतुङ्गाङ्गो भाति भूतिलकोपमः ॥४३ राजा मोहयुक्त होकर मूच्छित हुआ । उस स्त्रीको देखकर राजा इस प्रकार से स्पष्ट चिन्ता करने लगा । " यह स्त्री कौन है ? क्या पवित्र इन्द्राणी स्वर्ग से यहां आई है ? अथवा कमलको छोड़कर यहां कमला- लक्ष्मी आई हैं? यह चंद्रकी पत्नी रोहिणी है ? किंवा सूर्यपत्नी इस भूतलपर आई है ? क्या यह किन्नरी, विद्याधरी, अथवा गुणस्वरूपको धारण करनेवाली मदनकी पत्नी रति है ? इतने प्रकार के विकल्पसे यह कौन . मोहनवल्ली है ? ऐसा मनमें वह राजा विचार करने लगा। बडे कष्टसे चेतनाको प्राप्त होकर चिन्तनमें तल्लीन हुआ। उस समय वहां हाहाकार करके अनेक राजा आये । बडे कष्टसे चिन्तापीडित राजा पद्मनाभ सावध हुआ । उस समय राजाने नारदको नमस्कार कर पूछा, कि हे तात पट्टमें वर्णयुक्त यह सुंदर स्त्री कौन है ? जो सविभ्रमा - हावभावयुक्त महासौन्दर्यशालिनी है । इसका मुख विलासयुक्त भोएँ और आवर्तसे मनोहर है । हे ऋषे, आप मुझे निश्चयका कारण ऐसा सत्य कहिए आप भव्योंके स्वामी हैं । कहो ॥ ३२-३९ ॥ उस समय "हे राजा, यदि तुझे पट्टलिखित स्त्री रूपको सुननेकी इच्छा है तो सुन मैं कहता हूं जिससे तेरा मन स्थिर होगा " ऐसा नारदने कहा ॥ ४० ॥ “ अनेक द्वीपोंके मध्यमें जम्बूनामक मनोहर और महान् द्वीप है । इस गोल द्वीपने चन्द्रको जीता था, क्यों कि चन्द्र पौर्णिमाकी रात ही पूर्ण गोल रहता है अन्य तिथियों में नहीं । और इस द्वीपने योगिकोभी जीता था क्यों कि योगी भी वृत्तयुक्तचारित्रयुक्त होते हैं, उनके चारित्र में सदा एकरूपता नहीं रहती है । हमेशा कमजादापन होता है परंतु इस द्वीपके वृत्तमें- गोलाई में सदा एकरूपताही रहती है। इस जम्बूद्वीपके मध्य में सुदर्शननामक, एक लक्ष योजन ऊंचा प्रकाशमान मन्दरपर्वत है । वह पृथ्वीको तिलकके समान सुशोभित करता है । ४१-४३ ॥ इस मन्दरपर्वत के दक्षिण में जगतमें उत्तम धनुष्याकार, कलायुक्त, षट्खण्डों से 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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