Book Title: Panchsangrah
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ पञ्चसंग्रह पञ्चसंग्रहका यह सर्व-प्रथम प्रकाशन है और उसमें उस समस्त साहित्यका समावेश कर दिया गया है जो मूल संग्रहके आश्रयसे निर्मित हुआ है। इसमें मूल और भाष्य गाथाओंके अतिरिक्त १७वीं शतीमें सुमतिकीर्ति द्वारा रचित टीका भी है, एक प्राकृत वृत्ति भी है तथा श्रीपालसुत डड्डकृत संस्कृत पञ्चसंग्रह भी है। मूलका पाठ हिन्दी अनुवाद, पादटिप्पण तथा गाथानुक्रमणी व भूमिका परिश्रमसे तैयार किये गये है, जिसके लिए हम इसके सम्पादक पं० हीरालाल शास्त्रीको हृदयसे धन्यवाद देते हैं । इस प्रकाशनके लिए ज्ञानपीठके अधिकारी अभिनन्दनीय हैं । इस ग्रन्थके द्वारा जैन कर्म-सिद्धान्तके अध्ययनको और भी अधिक गति मिलेगी, ऐसी आशा है। हीरालाल जैन, शोलापुर आ० ने० उपाध्ये १५-६-६० प्रधान सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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