Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 13
________________ ५९२ ५६३ ५९३ ५६४ ५६५ ५६७ ५६७ ५९८ [२६] सज्झाय (१) कडवां फल छे क्रोधनां, (२) रे जीव ! मान न कीजिए, (३) समकितनुं मूल जाणीएजी, (४) तुमे लक्षण जो जो लोभनां रे ! (५) मद आठ महामुनि वारिये, [२७] छन्द तथा पद (१) नित जपिये नवकार, (२) समरो मन्त्र भलो नवकार, (३) वीर जिणेसर केरो शिष्य, (४) आदिनाथ आदे जिनवर वन्दी, (५) पूरव पुण्य-उदय करी चेतन ! (६) आशा औरनकी क्या कीजे, [२८] आरतियाँ (१) जय ! जय ! आरती आदि जिणंदा ! - (२) अपसरा करती आरती जिन आगे, [२६] मङ्गल-दीपक (१) दीवो रे ! दीवो मंगलिक दीवो, (२) चारो मंगल चार आज, [३०] छूटे बोल[३१] श्रावकके प्रतिदिन धारने योग्य १४ नियम. [३२] सत्रह प्रमार्जना o . or ० ur ० or ० or or or or or ६१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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