Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 11
________________ ५५२ ५५३ ५५४ ५५४ ५५५ ५५८ ५५६ (५) विमल-केवलज्ञान, (६) श्रीशत्रुञ्जय सिद्धक्षेत्र, (७) आदिदेव अलवसरू, (८) श्रीसीमन्धर ! जगधणी, (९) श्रीसीमन्धर वीतराग (१०) सीमन्धर परमातमा, (११) सकल-मङ्गल-परम-कमला, (१२) विध धर्म जेणे उपदिश्यो, (१३) त्रिगडे बेठा वीर जिन, (१४) महा सुदि आठम दिने, (१५) शासननायक वीरजी ! (१६) पर्व पर्युषण गुण नीलो, [२४] स्तवन (१) प्रथम जिनेश्वर प्रणमीए, (२) माता मरुदेवीना नन्द ! (३) ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम ! (४) पंथडो निहालं रे ! (५) प्रीतलड़ी बंधाणी रे ! (६) सम्भवदेव ते धुर सेवो, (७) अभिनन्दन जिन ! दरिसण, (८) दुःख दोहग दूरे टल्यां रे ! (९) धार तरवारनी सोहिली, (१०) शान्तिजिन एक मुझ विनति, (११) शान्ति जिनेश्वर साचो साहिब (१२) मनडुकिमहि न बाजे हो, (१३) अन्तरजामी सुण अलवेसर rrrrr or ur or or or ur 9 ५६५ ५६८ ५७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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