Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 10
________________ ४६७. ४६७ ५१४ ५२६ ५३६ ५४५ [७] सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी विधि [८] छींक आये तो करनेकी विधि [६] पच्चक्खाण पारनेकी विधि [१०] पोषध विधि [११] सामायिक लेनेकी विधिके हेतु [१२] सामायिक पारनेकी विधिके हेतु [१३] चैत्यवन्दनकी विधिके हेतु [१४] दैवसिक प्रतिक्रमणकी विधिके हेतु [१५] रात्रिक प्रतिक्रमणकी विधिके हेतु [१६] पाक्षिक चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणकी विधिके हेतु [१७] मङ्गल-भावना [१८] प्रभुके सम्मुख बोलनेके दोहे [१६] शत्रुञ्जयको प्रणिपात करते समय बोलनेके दोहे [२०] नवाङ्गपूजाके दोहे [२१] अष्टप्रकारी पूजाके दोहे [२२] प्रभुस्तुति (१) छे प्रतिमा मनोहारिणी, (२) आव्यो शरणे तुमारा, (३) त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो, (४) सकल-कर्मवारी, [२३] चैत्यवन्दन (१) पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, (२) बारगुण अरिहंतदेव, (३) शान्ति जिनेश्वर सोलमा, (४) ऋषभ-लंछन ऋषभदेव, ५४६ ५४७. ५४६ ५४६ ५४९ ५५० ५५० ५५० ५५१ ५५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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