Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
View full book text
________________
(१४) सिद्धारथना रे ! नन्दन, (१५) सुणो चन्दाजी ! सीमन्धर, (१६) पुक्खलवइ - विजये जयो रे !
(१७) विमलाचल नितु वन्दीए, (१८) सरस वचन रस वरसती, (१६) सुत सिद्धारथ भूपनो रे ! (२०) श्री राजगृही शुभठाम,
११
(२१) श्री ऋषभनुं जन्म - कल्याण रे ! (२२) मारे दीवाली थई आज,
[२५] स्तुतियाँ -
―
(१) आदि - जिनवर राया, ( २ ) वन्दो जिन शान्ति ! (३) संखेश्वर पासजी पूजीए, (४) जय जय ! भवि हितकर,
( ५ ) श्रीसीमन्धर जिनवर, (६) महाविदेह क्षेत्रमां सीमन्धर,
(७) जिनशासन - वांछित - पूरण,
(८) पुण्डरीक गिरि महिमा, ( 2 ) श्रीशत्रुञ्जय तीरथ सार, (१०) दिन सकल मनोहर, (११) श्रावण सुदि दिन पंचमीए,
(१२) मङ्गल आठ करो जस आगल,
(१३) एकादशी अति रूअडी, (१४) वरस दिवसमा अषाढ- चोमासु, (१५) पुण्यनुं पोषण पापनुं शोषण,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
५७२
५७२
५७३
५७४
५७५
५७८
५७६
५८०
५८१
५८१
५८२
५८३
५८३.
५८४
५८४
५८५
५८५
५८६
५८७
५८८
५८६
५८६
५६०
५६२
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 642