Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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१०८ बोल संग्रह
( १०१ ) दृष्टमंडलनई विषई जे साधु दोसई छइ तपागच्छना ते टाली बीजई क्षेत्र साधु नथी एहव कहइ छइ ते न मिलई,जे माटइं महानिशिथ दुःषमा स्त्रोत्रादिकनइं अनुसार इं क्षेत्रांतरई साधु सत्ता संभवइं एहवु परमगुरुनु वचन छई ।। १०१ ।।
इत्यादिक घणा बोल विचारवाना छइ ते सुविहित गीतार्थना वचनथी निर्धारीनइ सम्यक्त्वनी दृढता करवी ॥
इति श्री १०८ एकसो आठ बोल उपाध्यायश्री जसविजयगणिकृतं संपूर्ण ।।' .... संवत् १७४४ वर्षे चैत्र वदि १० वार रविदिने लिखितं श्रीराजनगरमध्ये मंगलमस्तु ।
गणि श्री ऋधिविमल तत शिष्य मुनि कीतिविमल लखावीतं भद्रं श्रीसंघनइं ।।
१ यह ग्रन्थ १०१ बोल पर ही समाप्त हो जाता है। सम्भवतः शेष बोल-प्रारम्भ के ५ बोलों के समान हो मूल प्रति में नष्ट हो गये
-सम्पादक