Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 134
________________ ___कायस्थितिस्तवन निःकुटपूट मांहियो संडासइ काढी नांखइ भूमि, देह मिलइ पारापरि दुखियागाढ प्रहारि घूमइ० वइतरणाइं काहइ चाहइ तरस्यो पोउं पाणी तातुं तरुउं मुखमांहिं डारइ उच्चारइ इम बाणी, आल जे दीधां मद्य जे पीधां सोधां फल तस एह, तप्त पूतली आलिंगावइ ए परदार सनेह ० धायो आयो असिवनमांहिं छाया माया हेत, छेद्यो भेद्यो पत्र खंड ते धाए खड्ग संकेत, दंभी कुंभी मांहि युज्यो भुंज्यो चणक प्रमाण, धर्यो तिहां जिहां अगनि अनिधन जलइ सदा जल वाण. ५ संतत्थण अत्थण अघ पाडइ फाडइ तीव्र कुहाडइ, करवत लेई परवत तनु दारइ मारइ धारइ चाडइ, नाम अणासिया पाव सिआला विकराला तेणइ खाधो, सांकल बांध्यो वैतालिकगिरि शिखरि चढाब्यो अलाधो० ६ ऊपरिथी पडतां तडफडता वोंधइ कुंतनी धारइं, जोतरीती तप्त लोह रथि बृष परि प्रहरई कठिन प्रहारई, ग्राम नगर पुर घात तणी परि आरत स्वर तिहां उठइ अशरण दीन अनाथ ते विलवइ धावइ कोइ न पूंठइं० ७ छेदी अंग मांस खवरावइ प्रस्तावई कहइ वाणी, परभवि वाल्हां मांस हुतां तुज तेहलं फल ए प्राणी, अच्छिनिमीलण मित्त नहीं सुख दुख नो तिहां नहीं पार,

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