Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजय जी कृत पवण सिहि मांहिं नरा दुभवा द्विधा कहिइ तेहथी, नीकल्या जेणि नर न थाइ एहु तिथि बइनइं कथी. इम भमतां जी दीनपणइ गया बहुदिना दुख पाम्यां जी ते सवि तुझ दर्शन बिना तुझ दीठइ रे नीठइ पापनी राशि रे, तूं छोडवइ रे जे पडिया भव पासि रे, भब पासि पडिया मोह नडिया तेहनइ तूं छोडवइ, .. सुखसिद्धि बिमणी मुगतिरमणी जोग युगति जोडवइ, ताहरा गुण प्रभु कहुं केता तं त्रिजग चूडामणी, दीजिइ हवइ मुझ करी करुणा 'सुजस' ऋद्धि सुहामणो.
ढाल-४ चउगतिमां भमतां दुःख पाम्या ते प्रभु कहियइ केतां, उदयागत आव्यां ते छुटइ कर्मनिकाचित वेतां, साते नगरे छेदन भेदन वेदन सही अनंत, उज्जल विउल पगाढ कडुअ अतिचंड दुग्ग पसरतो. भीषम ग्रीषम काल करालित जाल जटाल हुताशमाहिं निमीला लीला हुइ इहां उष्णवेदना, जास शीतवेदनावाली कालो नारकी जो इहां आवइ, टाढिं गादि हिमघन पवनइं दुख कणिका न वि पावइ. शीत उष्ण देदन इम इहांथो अमेते गुणी तिहां पामी, क्षेत्र अन्योन्य जनित वली बीजी करइ जे परमाधामी
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