Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti
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महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजय जी कृत गर्भज तिरि नर सांम (सम?) हुइ जी, पूर्व कोडि तिग पल्ल, ते आउख इ जाइ युगलिमा जो, आठमी वार अवल्ल. सो० १३ इथि दशाधिक पल्य सो जी, पूर्व कोडि पुहुत्त, छठइ आठमइ ईशानमा जी, अपरिगृहता जुत्त.
सो० १४ जघन्य समयथो क्लीबमां जी, हुइ अवेदक निज वेद, वेदी सुरलोकई जतां जी, सेस अंतमुहुत्त भेद,
सो० १५ लब्धि अपर्याप्ततणी जी, उत्कृष्टी पणि एह, - - थूल णंत पज सुहुममां जो, एहमां नहीं संदेह. सो० १६ इम कायस्थितिमा भभिओ जी, ते वीनविउ तुज्झ, 'जस' प्रभु ए दुख छोडवो जी, जाणो छो सवि गुज्ज. सो० १७
ढाल-३ हवइ कहस्यु जी ए भवथिति जेमई जोगवी,
___ संवेधई जी भवनइं भवमांहिं भोगवी, चउभंगई जी लहु गुरु परभव तब्भवई,
चउवीसमई जी शतकई जोतां संभवइ. संभवइ जोतां भगवई सुअ वीर गोअभ संमति, ए दिखावों तुह्म भुवननायक जेह चावं चउगति, सन्नि नर तिरि नरय छक्कइं आठभव एगंतरइं,
भवणवण जोइसिय कप्प दु आठ भव दु जहन फिरइ. १ ... सग सत्तमिइं एगंतर तिर्यच ए.
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