Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 128
________________ बालकेश्वर मण्डन श्रीपार्श्वनाथाय नमः महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी विरचित कार्यस्थितिस्तवन ढाल - १ समरी सरसति माया ए राया ए केवल कमला कंतो ए. तंतो ए तात आगलि जिम बालक टालक भव भमतां जे दुख लह्यां जे सह्यां तुम्हे सवि जाणो बाप ए पाप ए स्यं तुम्ह करतां हुइ नही ते सही जो तारो तो तारो ए लारो ए प्रणमी सदगुरु पाया ए सेतुंजगिरिने वोनवं ए. आदीसर भगवंतो ए वात कहुं सवि मूलथी ए. २ मुझ आगलि जगपालक वात करतो नवि करूं ए. ३ ते मइं नवि जाईं कह्यां ते कहतां हियडुं थरहरइ ए ४ शोधि दिउ हिवई आप ए सघलां माहरां टालिइ ए. ५ अंधकार व्यापित मही रविकिरणे हुइ ऊजली ए. ६ वीतडी अवधारो ए अवरतणी हुँ नवि लिउँ ए. ७

Loading...

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140