Book Title: Panchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Author(s): Yashovijay Gani, Yashodevsuri
Publisher: Yashobharti Jain Prakashan Samiti

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Page 81
________________ ४९ उपा. श्री यशोविजयजी विरचित गाहा || उददिसि नारिजीवो, दाणं विअरह विसायविसयमणो । पुढवी जिए रक्खतो, खंतिखमो जावजीवपि ॥ १ ॥ अर्थ - उर्द्ध दिसिं नारि जीवो क० स्त्रीनो जीव दानप्रति विअर कहतां दिइ, विसोय क० विगत गया, सोय कहतां श्रोतेंद्रियना विषय जेहथी अहवुं मन छइ जेहनुं पहवी थको पृथवीकायना जीवनइ राखतो । खंति क० क्षमाइ करी परी - सहादिकनो खमनारो जाव० कहितां जावजीवतांइ तेहनइ नमस्कार हो, एहवुं अर्थथी जाणवुं ॥ १ ॥ इम समद्दवो सजतो इत्यादिक फेरवतां १० गाथा थाइ । प पुढवि जिए ए पद साथि ते ठाम आउजिए इत्यादिक पद फेरवतां १०० गाथा थाइ । एविसोय विसयमणो ए पद साथि इम विचक्खु विसयमणो इत्यादिक पदस्युं गुणतां ५०० गाथा थाई । प दाण थिं इम सील पालेइ तव मणुतप्पइ भावं भावेइ ए ४ स्युं गुणतां २ हजार (२०००) सील पालेइ कहतां सील पालइ । तवमणुतप्प क० तप तप भावं भविइ क० भावना भाव ए २ हजार (२०००) भेद नारी जीवो ए पद साथ आज्या इम पुरिस जीवो ए पद साथइ २ हजार (२०००) क्लीव जीवो ए पद साथे पणि २ हजार (२०००) गाथा जाणवी । सर्व मिली ६ हजार (६००० ) थई । ए उठ्ठदिसिए पद साथइ' इम अहो दिसिए पद सार्थे ६ ६ हजार ( ६०००) गाथा कहवी । इमज तिरिय दिसि ए T

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