________________
है, उसका स्वाध्याय करना होता है। कोई शास्त्रों का स्वाध्याय भी बहुत करे, लेकिन तत्त्वाभ्यास नहीं करें तो भी लाभ नहीं होता है। श्री वट्टकेर स्वामी कहते हैं कि कोई अल्प शास्त्रज्ञ हो या बहु शास्त्रज्ञ हो; जो चारित्र से पूर्ण है वही संसार को जीतता है। जो चारित्र से रहित है, उसके बहुत शास्त्रों के जानने से क्या लाभ है? मुख्य सच्चे सुख का साधन आत्मानुभव है। जो साधु अनेक शास्त्रों का ज्ञाता हो, बहुत शास्त्रों का वाचन करने वाला तथा मननशील भी हो, लेकिन वह चारित्र से भ्रष्ट है तो सुगति को प्राप्त नहीं कर सकता है। यदि कोई दीपक को हाथ में ले कर कुमार्ग में जाकर कुए में गिर पड़े, तो उसका दीपक रखना निष्फल है, वैसे ही जो शास्त्रों को सीख कर भी चारित्र को भंग करता है, उस को शिक्षा देने का कोई फल नहीं है। (मूलाचार, गा. 4-15)
पण्डितप्रवर टोडरमलजी के शब्दों में "देखो, तत्त्वविचार की महिमा! तत्त्वविचाररहित देवादिक की प्रतीति करे, बहुत शास्त्रों का अभ्यास करे, व्रतादिक पाले, तपश्चरणादि करे, उसको तो सम्यक्त्व होने का अधिकार नहीं, और तत्त्वविचार वाला इनके बिना भी सम्यक्त्व का अधिकारी होता है। तथा किसी जीव को तत्त्व विचार होने के पहले कोई कारण पाकर देवादिक की प्रतीति हो, व व्रत-तप का अंगीकार हो, पश्चात् तत्त्वविचार करे; परन्तु सम्यक्त्व का अधिकारी तत्त्वविचार होने पर ही होता है।” (मोक्षमार्ग प्रकाशक, सातवाँ अधिकार, पृ. 260)
वक्खाणडा करंतु' बुहु' अप्पि ण दिण्णा' चितु। कणहि जि रहिउ पयालु जिम पर संगहिउ बहुत्तु ॥85॥
शब्दार्थ-वक्खाणडा-व्याख्यान; करंतु-करता हुआ; बुहु-विद्वान् ने (यदि); अप्पि-आत्मा में; ण दिण्णा-नहीं दिया; चित्तु-चित्त; कणहिं-कणों (अन्न के दानों) से रहित; पयालु-पयाल (डंठल सहित, दाने रहित सूखी घास); जिम-जिस प्रकार; पर संगहिउ-अन्य (द्रव्यों का) संग्रह (किया); बहुत्तु-बहुत।
अर्थ-व्याख्यान करने वाले विद्वान् ने यदि आत्मा में चित्त नहीं लगाया, तो यह उसी प्रकार से हुआ, जैसे उसने अन्न के कणों से रहित बहुत पयाल, अनाज की घास का संग्रह किया हो। - भावार्थ-यथार्थ में सम्पूर्ण जिनागम में एक आत्मा की मुख्यता से वर्णन किया
1. अ करंति; क, द, ब, स करंतु; 2. अ, ब, बुह; क, द, स बुहु; 3. अ अप्पुः क, द, ब, स अप्पि; 4. अ दिण्णउ; क, ब, स दिण्णा; द दिण्णु; 5. अ कणहि; क, द, स कणहिं; व कण; 6. अ रहउ; क रहियउ; द, स रहिउ; व रहिय।
पाहुडदोहा : 109.