________________
की लम्बी परम्परा प्राप्त की है। यदि यह शरीर से ममता हटा ले, तो ऐसी कौन-सी. सम्पत्ति है जो इसे प्राप्त नहीं हो सकती?
इस जगत में संसार से उत्पन्न जो-जो दुःख जीवों को सहने पड़ते हैं, वे सब इस शरीर में ममत्व बुद्धि होने से ही सहने पड़ते हैं। अतः जब यह शरीर गल जाता है, तब उसके साधन भी नहीं रहते हैं।
उम्मणि थक्का जासु मण भज्जा भूवहिं चारु। जिम भावइ तिम संचरउ णवि भउ' णवि संसारु ॥105॥
शब्दार्थ-उम्मणि-उन्मना, उदासीनता में; थक्का-स्थित; . जासु-जिसका; मण-मन-भज्जा-भाग (कर); भूवहि-भौतिक; चारु-सुन्दर (पदार्थों से); जिम-जिस तरह; भावइ-भाव करता है; तिम-उसी तरह; संचरउ-संचरण, प्रवृत्ति (करता) है; णवि भउ-नहीं भय (है); णवि. संसारु-नहीं (है) संसार। ... अर्थ-भौतिक पदार्थों से ऊबकर जिसका मन अपने में स्थित हो गया है, वह . जैसा भाव करता है, वैसी ही प्रवृत्ति करता है। उसके न तो भय है और न संसार
भावार्थ-इस विश्व में रहने वाले सभी प्राणी भौतिक पदार्थों के आकर्षण में मोहित होकर भौतिक समृद्धि को प्राप्त करने के लिए सदा उत्कंठित रहते हैं। वे भौतिक पदार्थों के उत्पादन, प्रसारण तथा प्रचार को ही उन्नति का उपाय मानते हैं। इसे प्रायः जड़ पदार्थों की महिमा तो भासित होती है, लेकिन चेतन परम पदार्थ की
ओर दृष्टि नहीं जाती। जिसकी संगति से यह बावला हो रहा है, उसका स्वभाव क्या है? इसका यदि विचार किया जाए, विवेक-बुद्धि से मनन किया जाए, तो समझ में आएगा कि शरीर का स्वभाव है-गलना, सड़ना, पड़ना, बिछुड़ना और मिलना। किन्तु स्वयं चेतन अखण्ड, अविनाशी, अजात, अजर-अमर, अमूर्तिक, शुद्ध, ज्ञाता-द्रष्टा, ईश्वरस्वरूप, परमानन्दमय, अनुपम, एक सत् पदार्थ है। आत्मा एक ऐसी वस्तु है जिसका स्वभाव ज्ञानानन्द है। जो अपनी सत्ता को नहीं पहचानता है, वास्तव में वह अपराधी है। पं. बनारसीदास के शब्दों में
जाकै घट समता नहीं, ममता मगन सदीव। रमता राम न जानई, सो अपराधी जीव ॥
समयसारनाटक, मोक्षद्वार, 25
1. अ, क, द, स भग्गा भूवहिं; व भग्गा भवहिं; 2. अ, ब चउ; क, द, स भउ।
190 : पाहुडदोहा