Book Title: Pahud Doha
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 255
________________ कोई प्राप्ति नहीं होती। इससे स्पष्ट है कि लौकिक मार्ग में राग भाव और कर्म की मुख्यता है तथा मोक्षमार्ग में स्वभाव ही मुख्य है। निज स्वभाव के आश्रय के बिना परमार्थ या मोक्ष-मार्ग प्रारम्भ नहीं होता। अतः चलने का मार्ग एक ही होगा; दो नहीं हो सकते। जो दोनों रास्तों पर चलना चाहता है या फिर कुछ समय के लिए एक रास्ते पर फिर दूसरे रास्ते पर चलने लगता है, वह वास्तव में किसी मार्ग पर ठीक से चलने वाला नहीं होता। जब तक पूर्णता का लक्ष नहीं होता, तब तक मार्ग निर्धारित नहीं होता। उववासह होइ पलेवणा संताविज्जइ देहु। घरु डन्झई इंदियतणउ' मोक्खह कारणु एहु ॥215॥ शब्दार्थ-उववासह-उपवास से; होइ-होती है; पलेवणा-प्रदीपना, जठराग्नि प्रदीप्त; संताविज्जइ-संतप्त करती है; देहु-देह, शरीर (को); घर-घर (इन्द्रियों का); डज्झइ-दग्ध हो जाता है, जल जाता है; इंदियतणउ-इन्द्रियों का; मोक्खह-मोक्ष का; कारणु-कारण; एहु-यह (है)। ___ अर्थ-उपवास करने से अग्नि प्रदीप्त होती है जो देह को संतापित करती है। इन्द्रियों का घर उससे जल जाता है जो मोक्ष का कारण है। - भावार्थ-'उपवास' शब्द का अर्थ-आत्मा के पास बैठना है। जो आत्मा के पास रहता है, वह शरीर की भूख-प्यास की चिन्ता नहीं करता। उपवास करने से शारीरिक लाभ और आत्मिक लाभ भी है। शरीररूपी मशीन में भोजन-पानी नहीं डालने से उसे विश्राम मिलता है, टूट-फूट दुरुस्त होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होने से विकारग्रस्त ईंधन जल जाता है, इससे शरीर में ताजगी आती है। ठीक इसी प्रकार शुद्धात्मा के पास रहने से ज्ञान की स्फूर्ति व ताजगी प्राप्त होती है। विवेक जाग्रत होने पर ज्ञानी को प्रत्येक समय ताजा ज्ञान उपलब्ध होता है। ज्ञान और वैराग्य होने पर इन्द्रियों का ग्राम उजड़ जाता है। ज्ञान की बस्ती में अनन्त गुणों का निवास होता है। सभी गुणों में ज्ञान व्यापक गुण है। ज्ञान का काम जानना, देखना है। ज्ञान किसी भी वस्तु या उसके काम को नहीं करता है। ज्ञान केवल जानता ही है। यह एक नियम है कि जो कर्ता है, वह भोक्ता भी है। 1. अ, क, द, स उववासह; व उववासह; 2. अ पलेवणउं; क, व पलेवणउ; द, स पलेवणा; 3. अ डज्झइं; क, द, ब, स डज्झइ; 4. अ इंदियतणउं; क, द, ब, स इंदियतणउ; 5. अ, क, द, स मोक्खह; व मोक्खहो। पाहुडदोहा : 253

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