Book Title: Pahud Doha
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 218
________________ सामिय-हे स्वामी!; उवएसु-उपदेश; कहि-कहो; अण्णहि-अन्य, दूसरों से; देवहि-देवों से; काई-क्या (है)। __ अर्थ-जिससे बुद्धि तड़ककर टूट जाए और मन भी अस्त हो जाए; हे स्वामी! ऐसा उपदेश कहिए। अन्य देवों से क्या है? भावार्थ-आचार्य कुलधर (सारसमुच्चय, श्लोक 300) कहते हैं कि जिसके अधीन अपनी आत्मा है और जो शान्त है,उसके अधीन तीनों लोक हैं। चिन्तामणि रत्न चिन्तित पदार्थों को, कल्पवृक्ष कल्पना किए हुए पदार्थों को प्रदान करता है, किन्तु शुद्धात्मा के ध्यान से अचिन्तित और अकल्पित पदार्थों की प्राप्ति होती है। __बुद्धि के उत्पन्न होने में कर्म का उदय है। जीव के परिणाम का कर्म के साथ कारण-कार्य भाव है। कर्म और चेतन में यह कार्य-कारण भाव कभी विद्यमान नहीं है। (योगसारप्राभृत, 3, 10) जीव कर्मोदय से निरन्तर अपने सभी प्रदेशों में व्याकुल रहता है; जैसे अग्नि के संयोग से अपने सम्पूर्ण अवयवों में उबलता हुआ जल स्पर्श करने से उष्ण मालूम पड़ता है। (पंचाध्यायी, गा. 247) जिस तरह प्यास के दुःख को दूर करने के लिए बुद्धिमान् शैवाल (काई) को .. हटाकर जल को पी लेता है, इसी तरह ज्ञानी सभी संकल्प-विकल्पों को छोड़कर एक निर्मल आत्मज्ञानरूपी अमृत का ही पान करते हैं। (ज्ञानार्णव, 4, 8) आत्म-ध्यान से ही मन विलीन होता है। निज शुद्धात्मा के अनुभव में रमण करना ही मन को गलाने का एक मात्र उपाय है। जैसा यह मन इन्द्रियों के विषयों में रमता है, वैसा यदि अपने आत्मा के अनुभव में रम जावे, तो योगीन्द्रदेव कहते हैं कि हे योगी! यह जीव शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त कर लेता है। (योगसार, 49) उनके ही शब्दों में अप्पसरूवह जो रमइ छंडइ सव्व ववहारु। . सो सम्माइट्ठी हवइ लहु पावइ भवपारु ॥योगसार, दो. 89 अर्थात्-जो सब व्यवहार को छोड़कर आत्मस्वरूप में रमण करता है, वह सम्यग्दृष्टि जीव है और वह शीघ्र ही संसार से पार हो जाता है। आचार्य पूज्यपाद के शब्दों में क्षीयन्तेऽत्रैव रागाद्यास्तत्त्वतो मां प्रपश्यतः। बोधात्मानं ततः कश्चिन्न मे शत्रुर्न च प्रियः ॥समाधिशतक, 22 अर्थात् जब मैं निश्चय से अपने ज्ञानस्वरूप का अनुभव करता हूँ, तब मेरे सब रागादि भाव विनाश को प्राप्त होते हैं। अतः इस जगत् में मेरा न कोई शत्रु है और न कोई मित्र है। इसके बिना वीतराग भाव की प्राप्ति नहीं होती। 216 : पाहुडदोहा

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