Book Title: Pahud Doha
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 209
________________ जिम' लोणु विलिज्जइ पाणियह तिम जई चित्तु विलिज्ज। समरसि हूवइ जीवडा काइं समाहि करिज्ज 177॥ शब्दार्थ-जिम-जैसे; लोणु-नमक; विलिज्जइ-विलीन हो जाता है; पाणियह-पानी का (में); तिम-उसी प्रकार; जइ-यदि; चित्तु-चित्त; विलिज्ज-विलीन होवे (तो); समरसि-समरस; हूवइ-हुआ; जीवडा-जीव; काई-क्या; समाहि-समाधि; करिज्ज-करे? अर्थ-जैसे नमक पानी में विलीन हो जाता है, उसी प्रकार यदि चित्त (निज शुद्धात्मा में) विलीन हो जाए तो जीव समरस हो गया। समाधि में (इसके सिवाय) क्या किया जाता है? समरसता ही समाधि है। भावार्थ-आचार्य उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे हंस! तू अपने मन को आत्मस्वरूप में लीनकर सदा इसी में संतुष्ट रह । इसी से तुझे तृप्ति होगी और इसी से उत्तम सुख की प्राप्ति होगी। संसारी जीव विकल्प सहित हैं। अधिकतर रात-दिन चिन्ताओं से घिरे रहते हैं। इसलिए वे समस्त विकल्प-जाल से रहित निर्मल ज्ञान, दर्शन स्वभावी निज परमात्मा का संगम (भाव-सेवन) नहीं कर पाते हैं। जब तक निज शुद्धात्म-स्वभाव में लीनता नहीं होती है, तब तक सब दुःख को सहते हैं। श्री ब्रह्मदेवसूरि (परमात्मप्रकाश, 2,142 टीका में) समझाते हुए कहते हैं कि जो कोई अज्ञानी विषय-कषाय के वश होकर शिवसंगम (निजभाव) में लीन नहीं रहते, वे व्याकुलता रूप दुःख सहते रहते हैं। जो साधु-सन्त परम समाधि से रहित हैं, वे शान्तिमय निज शुद्धात्मा का अवलोकन नहीं कर पाते हैं। निज स्वभाव में, जल में नमक की भाँति जब तक मन विलीन नहीं हो जाता, तब तक यथार्थ में पुरुष परमात्मा का आराधक नहीं होता। शुद्धात्म तत्त्व के विराधक विषय-कषाय हैं। जो इनका अभाव न करे तो वह परमात्मस्वरूप का आराधक कैसे है? विषय-कषाय की निवृत्ति रूप शुद्धात्मा की अनुभूति वैराग्य से ही देखी जाती है। वैराग्य और तत्त्वज्ञान दोनों की मैत्री है। जहाँ पर निर्विकल्प परमात्म स्वरूप से विपरीत रागादि समस्त विकल्प विलय को प्राप्त हो जाते हैं, उसको ही परमसमाधि कहते हैं। - मुनिश्री योगीन्द्रदेव कहते हैं कि जब तक शुभ, अशुभ भाव दूर नहीं होते, तब तक समाधि नहीं हो सकती। समाधि का लक्षण शुद्धोपयोग है। उसमें समस्त रागादि विकल्पों का अभाव हो जाता है। (परमात्मप्रकाश, 2, 174-175) 1. अ जिमि; क, द, ब, स जिम; 2. अ लोण; क, द, ब, स लोणु; 3. अ, ब तिमज्जइ क, द, स तिम जइ। पाहुडदोहा : 207

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