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१ धर्म क्या है सुख-स्वभावसे इसका सम्बन्ध होनेके कारण यह कर्तव्यका विवेक भी धर्म कहलाता है।
कर्तव्य-अकर्तव्यका नाम कर्म है और उस कर्मके फलस्वरूप होनेवाला सुख व दु.ख कर्मफल कहलाता है। इसलिए धर्मका सम्बन्ध कर्म व कर्मफलसे भी है । अत धर्म सम्बन्धी प्रकरणमे हमे तीन बातें जाननी अत्यन्त आवश्यक है हमारा स्वभाव क्या है, हमारा कर्तव्य क्या है और किस कर्मका क्या फल होता है । ये तीनो ही जानने योग्य है, इसलिए तीनो ही विज्ञान हैं। यही कारण है कि धर्म भी एक विज्ञान है।
इन तीनो ही विज्ञानोका पृथक्-पृथक् लम्बा विस्तार है अत. तीनोके लिए पृथक्-पृथक् पुस्तकें बनायी गयी है ताकि पाठकगण धैर्यपूर्वक तीनोका पृथक् २ परिचय प्राप्त कर सकें। स्वभावका सम्बन्ध वस्तुसे है क्योकि स्वभाव किसी न किसी पदार्थका ही होता है। इसलिए प्रथम विषयको समझानेके लिए यहाँ 'पदार्थविज्ञान' पढनेकी आवश्यकता है। कर्तव्य-अकर्तव्यका सम्बन्ध मन, वचन तथा कायकी प्रवृत्तिसे है अतः उसे जाननेके लिए धर्म-प्रवृत्ति (शान्तिपथ प्रदर्शन) का तथा कर्म व कर्मफल जाननेके लिए कर्म सिद्धान्त' का पढना आवश्यक है । इन तीनो विज्ञानोके लिए पृथक पृथक् तीन पुस्तकें लिखी गयी हैं-पदार्थ-विज्ञान, शान्तिपथ प्रदर्शन तथा कर्म सिद्धान्त । यहां पदार्थ-विज्ञानका प्रकरण है।