________________ Xviii न्यायकुमुदचन्द्र के 11 पत्र इसमें लग गए तथा इसके 11 पत्र संभवतः विवृतिकी प्रति में या और कहीं बंध गए होंगे। पर इस विनिमय से हमें विवृति के उद्धार में बहुत सहायता मिली है। पत्रों की लंबाई चौड़ाई 103441 इंच है / एक पृष्ठ में 13 पंक्ति तथा प्रत्येक पंक्ति में 49-50 अक्षर हैं। इसके प्रारम्भ के 108 पत्र तथा 213 और 214 वें पत्र आधे आधे गल गए हैं। इनको अति सावधानी से उठाने पर भी प्रतिक्षण इसके परमाणु विशीर्ण होते जाते हैं। अन्तिमपत्र तो इतने घिस गए हैं कि आईग्लास की मदद लेने पर भी कठिनता से ही वांचे जा सकते हैं। इसके अन्त में पुष्पिका लेख इस प्रकार है-'इति न्यायकुमुदचन्द्रवृत्तितर्कः समाप्तः मिति // छ // ग्रंथान 16000 // 1520 // छ / शुभं भवतुः // // श्री // इसके अन्त में 1520 का अङ्क देने से तथा प्रति की अवस्था देखते हुए कहा जा सकता है कि यह प्रति संभवतः संवत् 1520 में लिखी गई हो। इसके 308 से 313 तक के पत्र किसी दूसरे लेखक के लिखे मालूम होते हैं। कहीं कहीं छूटा हुआ पाठ हाँसिया में दिया गया है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रति लिखी जाने पर फिर से मिलाई गई है। अक्षर पृष्ठमात्रा वाले सुवाच्य हैं / प्रति शुद्ध है। हांसियां में कहीं कहीं अर्थबोधक टिप्पणियां भी दी गई हैं। प्रकरण की समाप्ति स्थल में कुछ शब्द गेरुआ रङ्ग से रङ्ग दिए गए हैं / अन्यप्रतियों की अपेक्षा हमें यह प्रति शुद्ध मालूम हुई इस लिए हमने इसे आदर्शप्रति मानकर प्रेस कापी की थी। इसमें आखिरी के 150 पत्रों में शब्दसादृश्य के कारण एक एक दो दो पंक्ति के पाठ छूट गए हैं। मालुम होता है लेखक लिखते लिखते ऊब गया था। मिलान करने वालों ने भी शुरू के पत्रों का मिलान करके प्रति को साधारणतया शुद्ध पाकर मालुम होता आगे का पाठ नहीं मिलाया। (२)'ब' संज्ञक, बनारस के श्री स्याद्वाद जैन महाविद्यालय के अकलंक सरस्वती भवन की प्रति है। यह प्रति आरा के जैनसिद्धान्त-भवन की प्रति पर से की गई है। अत्यन्त अशुद्ध है। इस में शक्ति-निरूपण से करीब 22 पत्र का पाठ बिलकुल छूट गया है। इस 22 पत्र के पाठ की भूल न केवल आरा और बनारस की प्रतियों में हैं; किन्तु खुरजा, व्यावर, इन्दौर, ललितपुर, जयपुर आदि के भंडारों की प्रतियों में भी है। इसका एक ही कारण मालुम होता है कि उत्तर प्रान्त की समस्त प्रतियां किसी ऐसे आदर्श से को गई है जिसमें उक्त पाठ न होगा, या लेखक ने सदृश शब्द आने से प्रथमप्रति में छोड़ दिया होगा। इसके अतिरिक्त इस प्रति में 1-2 पेज का पाठ भी दो जगह छूटा है। 2 / 4 पंक्तियों के पाठ का छूट जाना तो साधारण सी बात है। पत्र की लंबाई चौड़ाई 143473 इंच है। पत्र संख्या 279, एक पेज में 15 पंक्ति, एक पंक्ति में 50-51 अक्षर हैं। चैत्र शुद्ध 3 सं० 1964 की लिखी हुई है / अक्षर जितने सुवाच्य हैं उतनी ही अशुद्ध लिखी गई है। मार्जिन में विषय का नाम तथा टिप्पणी आदि कुछ नहीं है। (3) 'ज' संज्ञक, जयपुर के एक भंडार को प्रति है। इसका आदर्श भी कोई उत्तर प्रान्त की प्रति ही मालूम होती है। इसमें भी ब० प्रति की तरह 22 पत्र का पाठ छूटा है। ब० और ज० दोनों प्रतियों का आदर्श प्रायः एक ही मालुम होता है। पत्र संख्या 588 है। पत्र की लंबाई चौड़ाई 1545 इञ्च है। एक पेज में 7 पंक्ति, एक पंक्ति में 46-47 अक्षर हैं। ____नकल करने का समय आसोज सुदी 15 सं 1937 दिया गया है। टिप्पणी कहीं कहीं ही है / ब० प्रति की तरह सदृशशब्द आने पर पेज के पेज पाठ छोड़ दिए गए हैं / एक एक दो दो पंक्तियां तो बीसों जगह छूटी होंगी। प्रति का लेख सुवाच्य है। प्रति अशुद्ध है। (4) 'भां०' संज्ञक, भांडारकर प्राच्यविद्यासंशोधनमन्दिर की 5066 of 1937-38 नं. वाली ताड़पत्र की प्रति है। इसके पाठान्तर लेने को मैं स्वयं पूना गया था। कनड़ी वाचक की