________________ प्रस्तावना भव्याम्भोजदिवाकरो गुणनिधिर्योऽभूज्जगद्भूषणः सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्रजलधिः श्रीपद्मनन्दिप्रभुः। ताच्छष्यादकलङ्कमार्गानरतात्सन्न्यायमार्गोऽखिलः सुव्यक्तोऽनुपमप्रमेयरचितो जातः प्रभाचन्द्रतः // 4 // अभिभूय निजविपक्षं निखिलमतोद्योतनो गुणाम्भोधिः / सविता जयतु जिनेन्द्रः शुभप्रबन्धः प्रभाचन्द्रः // 5 // " इति प्रभाचन्द्रविरचिते न्यायकुमुदचन्द्रे लघीयस्त्रयालङ्कारे सप्तमः परिच्छेदः समाप्तः / 2 “गम्भीरं निखिलार्थगोचरमलं शिष्यप्रबोधप्रदं यद्वयक्तं पदमद्वितीयमखिलं माणिक्य नन्दिप्रभोः / तद्वव्याख्यातमदो यथावगमतः किञ्चिन्मया लेशतः स्थेयाच्छुद्धधियां मनोरतिगृहे चन्द्रार्कतारावधि // 1 // गुरुः श्रीनन्दिमाणिक्यो नन्दिताशेषसज्जनः / नन्दतादुरितकान्तरजा जैनमतार्णवः // 3 // श्री पद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेकगुणालयः / प्रभाचन्द्रश्चिरं जीयात् रत्ननन्दिपदे रतः // 4 // " श्री भोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणामार्जितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलङ्केन श्रीमत्प्रभाचन्द्रमण्डितेन निखिलप्रमागप्रमेयस्वरूपोद्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति / 3 “ज्ञानेस्वच्छजलस्सुरत्ननितर ( कर ) श्चारित्रवींचीचयः सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्रजलधिः श्रीपद्मनन्दिप्रभुः। 1 प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा तत्त्वार्थवृत्ति की प्रशस्ति के अन्तिम दो श्लोकों को पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार प्रभाचन्द्र की कृति नहीं मानते। प्रमेयकमलमार्तण्ड के अन्तिम दो इलोकों के बारे में आप लिखते हैं . इन पद्यों से पहले दो पद्यों और न्यायकुमुदचन्द्र की प्रशस्ति को देखते हुए, ये दोनों श्लोक अपने साहित्य और कथनशैली पर से प्रभाचन्द्र के मालूम नहीं होते। बल्कि प्रमेयकमलमार्तण्ड पर टीका-टिप्पणी लिखनेवाले किसी दूसरे विद्वान् के जान पड़ते हैं।" इसी तरह तत्त्वार्थवृत्ति की प्रशस्ति के बारे में आपने लिखै। है-" इनमें पहला पद्य तो प्रभाचन्द्र द्वारा रचित है और वह अपने साहित्यादि पर से प्रमेय कमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र के अन्तिम पद्यों के साथ ठीक तुलना किया जा सकता है। शेष दोनों पद्य दूसरे विद्वान द्वारा इस पद्य पर लिखी गई टीका-टिप्पणी के पद्य जान पड़ते हैं और वे संभवतः उसी विद्वान के पद्य हैं जिसने प्रमेय कमलमार्तण्ड पर टीका लिखी है।" मुख्तार सा० के इस मत से हम सहमत नहीं हैं। हमारा मत है कि ये श्लोक भी मूल प्रशस्ति से ही सम्बन्ध रखते हैं, क्योंकि प्रथम तो उनकी रचना में कोई ऐसी हीनता प्रतीत नहीं होती, जिस पर से उन्हें प्रभाचन्द्र आचार्य की कृति मानने में बाधा उपस्थित हो। दूसरे, प्रमेयकमल की जिन प्रतियों में 'श्रीमद्भाजदेवराज्ये आदि वाक्य नहीं है, उनमें भी अन्तिम दोनों पद्य पाये जाते हैं। तीसरे, जहाँ प्रमेयकमलमार्तण्ड में 'रत्ननन्दिपदे रतः / 1 अनेकान्त, वर्ष 1, पृष्ठ 130 / 2 अनेकान्त, वर्ष 1, पृ० 167 / 3 जयसलमेरकैटलाग (बड़ौदा)।