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छन्द-दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति : पाठ-निर्धारण
अशोक कुमार सिंह
छन्द की दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति के अध्ययन से पूर्व इसकी गाथा संख्या पर विचार कर लेना आवश्यक है । इस नियुक्ति के प्रकाशित संस्करणों एवं जैन विद्या के विद्वानों द्वारा प्रदत्त इसकी गाथा संख्या में अन्तर है । इसके दो प्रकाशित संस्करण उपलब्ध हैं. - मूल और चूर्णि सहित मणिविजयगणि ग्रन्थमाला, भावनगर १९५४ संस्करण' और 'निर्युक्तिसङ्ग्रह' शीर्षक के अन्तर्गत सभी उपलब्ध निर्युक्तियों के साथ विजयजिनेन्द्रसूरि द्वारा सम्पादित लाखाबावल १९८९ संस्करण' ।
भावनगर संस्करण में गाथाओं की संख्या १४१ और लाखाबावल संस्करण में १४२ है । जबकि वास्तव में लाखाबावल संस्करण में भी १४१ गाथायें ही हैं । प्रकाशन त्रुटि के कारण क्रमाङ्क १११ छूट जाने से गाथा क्रमाङ्क ११० के बाद ११२ मुद्रित है । फलतः गाथाओं की संख्या १४१ के बदले १४२ हो गई है, जो गलत है । अधिक सम्भावना यही है कि लाखाबावल संस्करण का पाठ, भावनगर संस्करण से ही लिया गया है । इसलिए भी गाथा संख्या समान होना स्वाभाविक है ।
'Government Collections of Manuscripts में एच. आर. कापडिया ने इसकी गाथा संख्या १५४ बताई है । 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ४ भाग - १ में भी इसकी गाथा सं. १५४ है । 'जिनरत्नकोश ५ में यह संख्या १४४ है । कापडिया द्वारा अपनी पुस्तक 'A History of the Jaina Canonical literature of the Jainas " में इस नियुक्ति की गाथा संख्या के विषय में दिया गया विवरण अत्यन्त भ्रामक है । वहाँ दी गई अलग-अलग अध्ययनों की गाथाओं का योग ९९ ही होता है ।
वस्तुत: 'Government Collections' में प्राप्त अलग-अलग अध्ययनों की गाथाओं का योग १४४ ही है, १५४ का उल्लेख मुद्रण-दोष के कारण है । इसका विवरण देखने योग्य हैं"
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“....this work ends on fol. 5; 154 gāthās in all; Verses of the different sections of this nijjutti corresponding to the ten sections of Daśāśrutaskandha are separately numbered as under :
असमाहिद्वाणनिज्जुत्ति
सबलदोसनिज्जुत्ति
आसायणनिज्जुत्ति
गणिसंपयानिज्जुत्ति
चित्तसमाहिद्वाणनिज्जुत्ति
उवासगपडिमानिज्जुत्ति
भिक्खुपडिमानिज्जुत्ति
११ Verses
३ Verses
१० Verses
७ Verses
४ Verses
११ Verses
८ Verses
६७ Verses ८ Verses
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पज्जोसवणाकप्पनिज्जुत्ति मोहणिज्जद्वाणनिज्जुत्ति आयतिद्वाणनिज्जुत्ति ....आचारदसाणं निज्जुत्ती ॥ छ ॥ गाथा १५४ ॥ " ( योग १४४ )
१५
verses
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