Book Title: Nirgrantha-3
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 380
________________ Vol. III - 1997-2002 तपागच्छ - बृहपौषालिक शाखा ३३५ धनरत्नसूरि भानुमंदिर भानुमंदिरशिष्य [वि. सं. १६१२ / ई. स. १५५६ में देवकुमारचरित्र के कर्ता) मुनि कांतिसागर के अनुसार गलियाकोट स्थित संभवनाथजिनालय में ही प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि. सं. १७८१ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसमें देवसुन्दरसूरि की शिष्य-परम्परा की एक पट्टावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि अमररत्नसूरि तेजरत्नसूरि देवसुन्दरसूरि विजयसुन्दरसूरि लब्धिचन्द्रसूरि विनयचन्द्रसूरि धरचन्द्रसूरि उदयचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि इस प्रकार विक्रम सम्वत् की १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक तपागच्छ की बृहद्पौषालिक शाखा का अस्तित्व सिद्ध होता है । Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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