Book Title: Nirgrantha-3
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 385
________________ ३४० शिवप्रसाद Nirgrantha २३. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ६२-६३. ___मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, कुशल पुष्प ४, जयपुर १९९० ई. स., पृष्ठ १८६. २४. मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ १८७-८८. २५. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ १२९-३०. २६. त्रिपुटी महाराज, संपा. संग्राहक-पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४४, अहमदाबाद १९५० ई. स., पुरवणी, पृष्ठ २४०-४१. २७. H. D. Velankar, Jinaratnakosha, Poona 1944 A. D., p. 350. २८-२९ द्रष्टव्य-बृहद्पोषालिक शाखा के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की विस्तृत सूची. ३०. Vidhatri Vora, Ibid., p. 850. ३१. जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका ७५७, ७७५. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ २१३. ३२. द्रष्टव्य-प्रतिमालेखों की विस्तृत सूची. 33. A. P. Shah, Ibid., Part II, L. D. Series No. 5, Ahmedabad 1965 A. D. No. 6085, p. 390-91. ३४. जैनगूर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ २७४-७६. ३५. श्री विनयसागरजी के अनुसार यह प्रशस्ति संभवनाथ जिनालय गलियाकोट के एक चैत्यालय पर उत्कीर्ण है । उन्होंने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : ॥ॐ॥ संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ सोने वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव्य हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां । गां. श्रीउदयसिंह सुत गां. नाभा सु. गां. दाखा सुत गां. आणंद भार्या दाडिमदे सुत गां. घीसकर भार्या कनकादे अमरी सुपराणदे रूपादे । सुपराणदे सुत गां. वीरू माऊ वीला भा. कनकादे सुत गां. घीसकरा भार्या कल्याणदे रूपा भार्या केसरदे गां. घीसकर वि । हेनीबाई रङ्गाबाई चगा । समस्त कुटुम्बश्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिका कारिता । श्रीचन्द्रप्रभाबिंबं स्थापितं श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्रेयसे । शुभंभवतु । यात्रा शुभंभवतु । श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री पं. विनयचारित्र पं. विमलरत्न पं. जयसिंह पं. वीसल चेला आणंदरत्न लिखितम् ॥ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जिनमणिमालाः चतुर्थमणि, कोटा १९५३ ई., लेखांक १०३४. ॥ॐ| संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव्य हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां गांधी..............श्रीपाल भ्रातृ गां. धीहर जयपाल भार्या सरूपदे सुत गांधी गांगा भार्या मेलादे ह. ........भार्या खीमदे सुत गांधी सांगा गांधी जेवंतया भार्या स. .......मदि सुत गांधी बल गांधी जेवंत भार्या भगादे सुत गांधी भारिमल्ल भार्या मिलापदे समन्तकुटुम्बयुतेन श्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिका कारापिता श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ. श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ. श्रीदेवरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभंभवतु || वही, लेखांक, १०३३. संवत् १६३७ वर्षे फागुण सुदि ५ वुधे बागडदेशे राउलश्री सहसमल श्रीविजयराज्ये श्रीगिरपुरवास्तव्य हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखीय मढासाआ जीवा भार्या जीवादे सुत गुढसीआ भार्या भाखणदे मू.....भार्या जूढिआ कुटुम्बयुतेन श्रीकोट नगरमध्ये श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिकाकारीता मध्ये श्रीसुविधिनाथबिंबं स्वस्य श्रेयसे: श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्री........... भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्री ५ श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठित शुभंभवतु || पं. विनयचारित्र पं. जयसिंह पं. ज्ञानरत्न पं. वीररत्न शि. आणंदरत्नेन लिखितं ॥ वही, लेखांक १०३२. ३६-३७. A. P. Shah, Ibid., Part I, No. 645, p. 51. ३८. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, पृष्ठ १०-१७, ३७३-७४. ३९. Vora, Ibid., p. 1. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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