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Vol. III - 1997-2002
भरुच से प्राप्त जिन-धातुप्रतिमाओं के लेख (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २० लम्बाई - १३ चौड़ाई - ७. ५.) १०. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - त्रितीर्थी प्रतिमा - संवत् १३०१ (१३१०) (६६)
मध्य में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, ऊपर सप्त नागफणा, जिन के शरीर के बाकी हिस्से का रेखांकन तीर्थङ्कर की पीठिका तक किया गया है। दोनों ओर चामरधारी, यक्ष-यक्षी, सिंहासन के मध्य भाग में सर्प लाञ्छन का स्पष्ट रेखांकन, पीठिका पर धर्मचक्र, नवग्रह एवं आराधक स्त्री-पुरुष आदि अष्ट प्रातिहार्य के अंकनों के साथ-साथ परिकर को भी अलङ्कृत किया गया है ।
९० ॥ संवत् १३१० वर्षे फागुण वदि ५ स(श )नौ श्री प्रागवाटत्वये [प्राग्वाटान्वये ] पो. तिहुणपाल पालक (त्र, त्व तूतये श्रेयसे प्रा. क्षीमसीहेन भा.-यकया सहितेन श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्र. श्री यशोदेवसूरिभि ।
(नाप (से. मी.) ऊँचाई - १७.५ लम्बाई - ११.५ चौड़ाई - ७.५.) ११. आदिनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३२७ (३८)
विशिष्ट प्रकार के परिकरयुक्त तीर्थङ्कर आदिनाथ की यह प्रतिमा प्रातिहार्य सहित है । प्रतिमा में नज़र आ रही लालिमा ताँबे के अधिकतर प्रयोग से है। द्विपीठिकायुक्त इस प्रतिमा की प्रथम पीठिका पर यक्षयक्षी, धर्मचक्र एवं नवग्रह के अंकन हैं और द्वितीय पीठिका के दोनों छोर पर आराधक/कारापक श्रावकश्राविका के अंकन है ।
९ सं. १३२७ माह सुदि ५ श्रीमाल ज्ञातिय शांतान्वये भांडा राजा सुत भांडा, नाग(गे)न्द्र भायाँ वा ब)उलदेवि तयोः सुत राणाकेन पित्रोः श्रेयार्थे श्री आदिनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं भावडार गच्छे श्री भावदेवसूरिभिः ठ॥
भावडार गच्छ ऊपर कथित भावदेवाचार्य गच्छ का ही नामान्तर है । (नाम (से. मी.) ऊँचाई- १६.५ लम्बाई - १२ चौड़ाई - ६.५) १२. चन्द्रप्रभस्वामी - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३२६ (३५)
प्रातिहार्य समेत इस प्रतिमा में भी अन्य प्रतिमाओं की तरह चामरधारी, धर्मचक्र, नवग्रह, यक्ष-यक्षी आदि अंकन किए गए है।
९० ॥ संवत् १३२६ वर्षे माघ वदि र रवौ मोढज्ञातिय -(सा)त् कुवार भार्या ठ जयतु श्रेयार्थे ठ आहडेन श्री चन्द्रप्रभबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं श्री परमानन्दसूरिभिः ।ठ।।
प्रतिमा का कारापक मोढ ज्ञाति का होने से लेख ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। १३. आदिनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३३१ (१६)
आदिनाथ की प्रातिहार्य संलग्न इस प्रतिमाओं में अन्य प्रतिमाओं से अलग कुछ नई विशेताएँ हैं जिनमें प्रतिमा की पीठिका के दोनों छोर पर बने लंब चतुष्कोण आधार पर अंकित अष्टग्रह, सिंहासन के दोनों छोर पर यक्ष-यक्षी के अंकन नहीं है पर उनके स्थान पर दो चतुष्कोण के अंकन किए गए हैं। जिन पर सूर्य जैसा रेखांकन किया गया है, प्रतिमा के पीछे दण्डधारी सेवक का अंकन महत्त्वपूर्ण है जो किसी विशेष गच्छ या स्थान की विशिष्टता है। प्रतिमा लेख में किसी गच्छ या स्थान का उल्लेख नहीं किया गया है।
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