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Vol. III-1997-2002
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तपागच्छ - बृहद्पौषालिक शाखा
धनरत्नसूरि
अमररत्नसूरि
देवरत्नसूरि
जयरत्न
राजसुन्दर
भुवनकीर्ति
पद्मसुन्दर [वि. सं. १७०७-३४ के मध्य भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता]
रत्नकीर्ति
चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहगणि४४ भी इसी गच्छ के थे । अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है :
रत्नसिंहसूरि
उदयवल्लभसूरि
ज्ञानसागरसूरि
उदयसागरसूरि
लब्धिसागरसूरि
धनरत्नसूरि
मुनिसिंहगणि
नयसिंहगणि [वि. सं. १६२५ के आस-पास चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार] नयसिंहसूरि द्वारा रचित अन्य कोई कृति नहीं मिलती ।
धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमेरुगणि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य नयसुन्दर५ अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे । इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं :
१. रूपरत्नमाला २. श@जयोद्धारस्तवन ३. नवसिद्धिस्तवन ४. सीमंधरवीनतीस्तवन ५. शत्रुजयउद्धार [वि. सं. १६३८ / ई. स. १५७२] ६. स्थूलिभद्रएकवीसो
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