Book Title: Nirgrantha-3
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 377
________________ ३३२ शिवप्रसाद Nirgrantha १. कर्पूरमंजरीरास [वि. सं. १६६२] २. गुणधर्मकनकवतीप्रबन्ध ३. सगालसाहरास [वि. सं. १६६७] ४. देवदत्तरास ५. रश्यसेनरास [वि. सं. १६७३] ६. जिनपालितसज्झाय ७. दशवैकालिकसूत्रबालावबोध ८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्तवन (वि. सं. १७०३) अपनी कृतियों में रचनाकार द्वारा दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार है : अमररत्नसूरि देवरत्नसूरि जयरत्नसूरि विद्यारत्न कनकसुन्दरगणि [वि. सं. १६६२-१७०३ के मध्य विभिन्न कृतियों के रचनाकार] जयरत्न के दूसरे शिष्य भुवनकीर्ति हुए जिनके पट्टधर रत्नकीर्ति ने० वि. सं. १७२७ में स्त्रीचरित्ररास की प्रतिलिपि की । रत्नकीर्ति के शिष्य सुमतिविजय द्वारा वि. सं. १७४९ में रचित रत्नकीर्तिसूरिचउपई' नामक कृति प्राप्त होती है। सुमतिविजय द्वारा रचित रात्रिभोजनरास नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है । रत्नकीर्तिसूरिचउपड़ में रचनाकार ने अपने अन्य गुरु भ्राताओं-रामविजय, हेमविजय और गुणविजय का भी नाम दिया २ है । वि. सं. १७३४ में रत्नकीर्तिसूरि के निधन के पश्चात् गुणविजय गुणसागरसूरि के नाम से उनके पट्टधर बने । इनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही किसी प्रतिमालेख में नाम मिलता है। चूँकि वि. सं. १७४९ के पश्चात् इस गच्छ से सम्बन्धित कोई उल्लेख नहीं मिलता अत: अभी यही इस गच्छ का अंतिम साक्ष्य कहा जा सकता है । भुवनकीर्ति रत्नकीर्ति [वि. सं. १७२७ में स्त्रीचरित्ररास के प्रतिलिपिकार] सुमतिविजय रामविजय हेमविजय गुणविजय अपरनाम गुणसागरसूरि वि. सं. १७४९ में रत्नकीर्तिसूरि-चउपड़ एवं रात्रिभोजनरास के कर्ता वि. सं. १७०७-३४ के मध्य रचित भगवतीसूत्रबालावबोध.३ के कर्ता पद्मसुन्दर भी इसी शाखा के थे । अपनी कृति के अन्त में उन्होंने गुरुपरम्परा दी है, जो इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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