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Vol. III - 1997-2002
तपागच्छ - बृहपौषालिक शाखा
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धनरत्नसूरि
भानुमंदिर
भानुमंदिरशिष्य [वि. सं. १६१२ / ई. स. १५५६ में देवकुमारचरित्र के कर्ता)
मुनि कांतिसागर के अनुसार गलियाकोट स्थित संभवनाथजिनालय में ही प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि. सं. १७८१ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसमें देवसुन्दरसूरि की शिष्य-परम्परा की एक पट्टावली दी गयी है, जो इस प्रकार है :
धनरत्नसूरि
अमररत्नसूरि
तेजरत्नसूरि
देवसुन्दरसूरि
विजयसुन्दरसूरि
लब्धिचन्द्रसूरि
विनयचन्द्रसूरि
धरचन्द्रसूरि
उदयचन्द्रसूरि
जयचन्द्रसूरि
इस प्रकार विक्रम सम्वत् की १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक तपागच्छ की बृहद्पौषालिक शाखा का अस्तित्व सिद्ध होता है ।
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