Book Title: Nirgrantha-3
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 332
________________ Vol. III- 1997-2002 अकलंकदेव कृत न्यायविनिश्चय... "पक्षधर्मस्तदंशेन व्याप्तो हेतुस्त्रिधैव सः । अविनाभावनियमात् हेत्वाभासस्ततोऽपरे ॥ " यह हेतुबिन्दु की प्रथम कारिका है ५९ । हेतुबिन्दु के इसी श्लोक १ को ही आधार बनाकर सिद्धिविनिश्चय की कारिका संख्या ६/२ का संगठन किया गया है । संगठित कारिका इस प्रकार है ५२ " पक्षधर्मस्तदंशेन व्याप्तोऽप्येति हेतुताम् । अन्यथानुपपन्नोऽयं न चेत्तर्केण लक्ष्यते ॥” कारिका ५/८ की वृत्ति में " .. वादी निगृह्यते तत्त्वतः साधनाङ्गावचनात् तथा प्रतिवाद्यपि भूतदोषमप्रकाशयन् । तत्त्वं प्रमाणतोऽप्रतिपादयतः असाधनांगवचनं भूतदोषं समुद्भावयति प्रतिवादीति..... "५३ इत्यादि कथन के द्वारा एवं अगली " असाधनाङ्गवचन मद्दोषोद्भावनं द्वयोः । निग्रहस्थानमिष्टं चेत् किं पुनः साध्यसाधनैः ५४ ॥ " इस कारिका संख्या ५/१० के द्वारा वादन्याय की आद्य कारिका की समालोचना की गई है । वादन्याय की मूल कारिका इस प्रकार है५५ " असाधनांगवचनमदोषोद्भावनं द्वयोः । निग्रहस्थानमन्यत्तु न युक्तमिति नेष्यते ॥" २८७ कारिका संख्या ५/११ की वृत्ति में " तन्न सुभाषितम्" करके "विजिगीषुणोभयं कर्तव्यं स्वपक्षसाधनं च'"५५ यह वाक्य उद्धृत है । यह कथन किस शास्त्र का है, यह अभी ज्ञात नहीं हुआ है । सिद्धिविनिश्चय की कारिका संख्या ५/१५ का उत्तरार्ध इस प्रकार पाया जाता है५७ “अन्तर्व्याप्तावसिद्धायां बहिर्व्याप्तिरसाधनम् । यही कथन अकंलक के एक अन्य ग्रन्थ प्रमाणसंग्रह की कारिका ५ में, इस तरह मिलता है५८ Jain Education International "अन्तर्व्याप्तावसिद्धायां बहिरंगमनर्थकम् ।" न्यायावतार में उक्त कथन का अभिप्राय इस प्रकार व्यक्त किया गया है तथा उसे न्यायविदों का ज्ञान कहा गया है । मूल श्लोक इस प्रकार है५९ - "अन्तर्व्याप्त्यैव साध्यस्य सिद्धौ बहिरुदाहृतिः । व्यर्था स्यात्तदसद्भावेऽप्येवं न्यायविदो विदुः ॥” कारिका संख्या ५/१५ की वृत्ति में " दोषवत्त्वेऽपि यथा वाद्युक्तदोषोद्भावनायां प्रतिवादिनः सामर्थ्यान्निग्रहस्थानम्"६० यह वाक्य उद्धृत किया है और इस कथन को बालभाषित कहा गया है । यह उद्धरण किस ग्रन्थ का है, यह अभी पता नहीं चल सका है । कारिका संख्या ६ / २ की वृत्ति में "निरूपचरित - स्व" करके "तदंशः तद्धर्मस्तदेकदेश इति "६१ यह वाक्यांश उद्धृत है । यह हेतुबिन्दु का वचन है । हेतुबिन्दु में कारिका इस प्रकार आरम्भ होती है२ " तदंशो हि तद्धर्म एव....।" कारिका संख्या ६/२ की वृत्ति में "पक्षशब्देन समुदायवचनात् "६३ यह वाक्य आया है। यह हेतुबिन्दु For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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