Book Title: Nirgrantha-3
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 373
________________ ३२८ शिवप्रसाद Nirgrantha आयी३ । रत्नसिंहसूरि की शिष्यपरम्परा बृहद्तपागच्छ की मुख्य शाखा के रूप में आगे बढ़ी, जब कि जयशेखरसूरि के शिष्य जिनरत्नसूरि४ की शिष्यसन्तति का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ । जयतिलकसूरि के दो अन्य शिष्यों-धर्मशेखरसूरि और माणिक्यसूरि की शिष्य-परम्परा आगे नहीं चली । रत्नसिंहसूरि तपागच्छ की बृहद्पौषालिक शाखा के प्रभावक आचार्य थे । वि. सं. १४५९ से लेकर वि. सं. १५१८ तक के पचास से अधिक प्रतिमालेखों में प्रतिमा-प्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: वि. सं. १४५९ ज्येष्ठ वदि ९ शुक्रवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८१ वैशाख सुदि ३ (दो प्रतिमालेख) वि. सं. १४८१ माघ सुदि ५ बुधवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८१ माघ सुदि ९ शनिवार (दो प्रतिमालेख) वि. सं. १४८५ वैशाख सुदि ७ सोमवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८६ वैशाख सुदि १५ सोमवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८७ माघ वदि ८ सोमवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८८ वैशाख सुदि १० गुरुवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८९ पौष वदि १० गुरुवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४८९ पौष वदि १२ शुक्रवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४९३ तिथिविहीन (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १४९६ ज्येष्ठ सुदि १० बुधवार (एक प्रतिमालेख) सं. १४९९ फाल्गुन वदि ६ (एक प्रतिमालेख) सं. १५०० तिथिविहीन (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०० वैशाख सुदि ५ (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०० माघ सुदि १३ गुरुवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०३ आषाढ़ वदि ७ सोमवार (एक प्रतिमालेख) सं. १५०३ माघ वदि २ शुक्रवार (एक प्रतिमालेख) सं. १५०३ फाल्गुन वदि २ बुधवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०४ ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार (दो प्रतिमालेख) . सं. १५०५ वैशाख (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०६ माघ सुदि रविवार (एक प्रतिमालेख) वि. सं. १५०७ वैशाख वदि २ गुरुवार (एक प्रतिमालेख) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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