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मृगेन्द्रनाथ झा
Nirgrantha श्रीनेमिजिनस्तुतिः
(स्रग्धरा) राज्यं राजीमती च त्रिदशशशिमुखी गर्व सर्वं कषां यः, प्रेमस्थामाऽभिरामां शिवपदरसिकः शैवक श्रीवुवूर्षुः । त्यक्त्वाच्चो(चो )द्दामधामा सजलजलधरश्यामलस्निग्धकाय
च्छायः पायादपाया दुरुदुरितवनच्छेदनेमिः सुनेमिः ॥१॥ सुर-सुन्दरियों से भी अधिक सुन्दर तथा प्रगाढ़ प्रेमयुता मनोहर राजीमती को छोड़कर शिवलक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छावाले, राज्य को छोड़कर मोक्ष साम्राज्य के अभिलाषी, जल से भरे मेघ समान श्याम और चमकीले शरीर की कान्तिवाले, जघन्य पाप रूप विकट वन को काटने में चक्र के समान सिद्ध हुए श्री नेमिजिन आपकी रक्षा करें ॥१॥
दातारो मुक्तिलक्ष्मी मद-मदनमुख-द्वेषिणः सूदितारस्त्रातार: पापपङ्कात्रिभुवनजनतां स्वश्रियं भासितारः । स्त्रष्टारः सद्विधीनां निरुपम-परम-ज्योतिषां वेदितारः,
शास्तारः शस्तलोकान्सुगति-पथ-रथं पान्तु वः तीर्थनाथाः ॥२॥ मोक्ष रूप सम्पत्ति को देने वाले, काम-मद-द्वेष को नाश करनेवाले, तीनों लोकों को पाप के पङ्क से रक्षा करनेवाले, तीनों भुवनों को अपनी विभूति से आलोकित करनेवाले, सन्मार्ग की रचना करनेवाले, परम के ज्ञाता, कल्याण चाहने वालों को मोक्ष का मार्ग बताने वाले तीर्थंकरों रक्षा करें ॥२॥
पीयूषौपम्य रम्यां शुचि पद पदवीं यस्य माधुर्य धुर्यां, पायं-पायं व्यपायं भुवि विबुधजनाः श्रोत्रपात्रैः पवित्रैः । जायन्ते जाड्यमुक्ता विगतमृतिरुजः शाश्वतानन्दमग्नाः,
सोऽयं श्रीधामकामं जयति जिनवचः क्षीरनीराब्धिनाथः ॥३॥ जिनवचन रूप क्षीरसमुद्र सर्वश्रेष्ठ है, जिनके अमृत के समान रम्य और माधुर्य से श्रेष्ठ पवित्र पदों को अपने कानों से सही ढंग से बार-बार सुनकर विबुध लोग जड़ता, मृत्यु, और रोग से मुक्त होकर शाश्वत आनन्द में मग्न होते हैं ॥३॥
या पूर्वं विप्रपली सुविहित विहित प्रौढ दान प्रभावप्रोन्मीलन्पुण्य पूरैरमर महिमा शिश्रिये स्वर्गद्वारम् । सा श्रीमन्नेमिनाथ प्रभुपदकमलोत्सङ्ग शृङ्गार भृङ्गी,
विश्वाऽम्बा वः श्रियेऽम्बा विपदुदधिपतद्दत्तहस्तावलम्बा ॥४॥ जो पूर्वभव में ब्राह्मण की पत्नी थी तथा सुपात्रदान के प्रभाव से, पुण्य का उदय होने पर, स्वर्ग में आश्रय लेकर, श्री नेमिनाथ के चरणकमल को अपनी गोद में रखकर उसके श्रृंगार पर भंवरी के समान, विपत्तिरूप समुद्र में गिर रहे लोगों को अपने हाथों के सहारे रोकने वाली जगदम्बा अम्बा भगवती आप का कल्याण करें ॥४॥
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