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Vol. III - 1997-2002 छन्द-दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति...
२७१ असङ्गत है। अतः यह गाथा भी द. नि. का अङ्ग रही होगी। यही स्थिति शेष दोनों गाथाओं ३१९२ और ३२०९ की भी है।
इस प्रकार चूर्णि में इन गाथाओं का विवेचन और विषय-प्रतिपादन में साकाङ्क्षता द. नि. से इन गाथाओं के सम्बन्ध पर महत्त्वपूर्ण समस्या उपस्थित करती हैं।
द. नि. की गाथा संख्या पर विचार करने के पश्चात् गाथाओं में प्रयुक्त छन्दों का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है - द. नि., प्राकृत के मात्रिक छन्द 'गाथा' में निबद्ध है । 'गाथा सामान्य' के रूप में जानी जाने वाली यह संस्कृत छन्द आर्या के समान है । 'छन्दोऽनुशासन'१६ की वृत्ति में उल्लेखित भी है - 'आर्यैव संस्कृतेतर भाषासु गाथा संज्ञेति गाथा लक्षणानि' अर्थात् संस्कृत का आर्या छन्द ही दूसरी भाषाओं में गाथा के रूप में जाना जाता है। दोनों - गाथा सामान्य और आर्या में कुल मिलाकर ५७ मात्रायें होती हैं। गाथा के चरणों में मात्रायें क्रमशः इस प्रकार हैं - १२, १८, १२ और १५ । अर्थात् पूर्वार्द्ध के दोनों चरणों में मात्राओं का योग ३० और उत्तरार्द्ध के दोनों चरणों का योग २७ है।
'आर्या' और 'गाथा सामान्य' में अन्तर यह है कि आर्या में अनिवार्य रूप से ५७ मात्रायें ही होती हैं, इसमें कोई अपवाद नहीं होता, जबकि गाथा में ५७ से अधिक-कम मात्रा भी हो सकती है, जैसे ५४ मात्राओं की गाहू, ६० मात्राओं की उद्गाथा और ६२ मात्राओं की गाहिनी भी पायी जाती है । मात्रावृत्तों की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके चरणों में लघु या गुरु वर्ण का क्रम और उनकी संख्या नियत नहीं है। प्रत्येक गाथा में गुरु और लघु की संख्या न्यूनाधिक होने के कारण 'गाथा सामान्य' के बहुत से उपभेद हो जाते हैं ।
द. नि. में 'गाथा सामान्य' के प्रयोग का बाहुल्य है । कुछ गाथायें गाहू, उद्गाथा और गाहिनी में भी निबद्ध हैं । सामान्य लक्षण वाली गाथाओं (५७ मात्रा) में बुद्धि, लज्जा, विद्या, क्षमा, देही, गौरी, धात्री, चूर्णा, छाया, कान्ति और महामाया का प्रयोग हुआ है।
गाथा सामान्य के उपभेदों की दृष्टि से अलग-अलग गाथावृत्तों में निबद्ध श्लोकों की संख्या इस प्रकार है - बुद्धि-१. लज्जा-४, विद्या-११, क्षमा-९, देही-२८, गौरी-२२, धात्री-२३, चूर्णा-१५, छाया-८, कान्ति३, महामाया-३, उद्गाथा-९ और अन्य-४ ।
यह बताना आवश्यक है कि सभी गाथाओं में छन्द लक्षण घटित नहीं होते हैं । दूसरे शब्दों में, सभी गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध हैं या निर्दोष हैं, ऐसी बात नहीं है कुछ गाथायें अशुद्ध भी हैं।
नियुक्ति गाथाओं में गाथा-लक्षण घटित करने के क्रम में जो तथ्य सम्मुख प्रकट होते हैं वे इस प्रकार हैं -
इस नियुक्ति में १४१ में से ४४ गाथायें गाथा लक्षण की दृष्टि से निर्दोष हैं अर्थात् इन ४४ गाथाओं में गाथा लक्षण यथावत् घटित हो जाते हैं । इनका क्रम इस प्रकार है - १, ३, ४, ९, १४, १६, १८, २१, २५, २६, २८, ३०, ३७, ३९, ४२, ४४, ४७, ४८, ५२, ५३, ५६, ६१, ६२, ७२, ७७, ८७, ८८, ९१, ९३, ९४, ९५, ९९, १००, १०५, १०७, १०९, ११२, ११५, ११९, १२०, १२१, १२३, १२४, १३४ ।
दस गाथाओं में चरण-विशेष के अन्तिमपद के गुरुवर्ण की हुस्व के रूप में गणना करने से गाथाण घटित हो जाते हैं तो सोलह गाथाओं में चरण-विशेष के अन्तिमपद के लघु वर्ण को गुरु के रूप में गणना करने से छन्द लक्षण घटित हो जाता है। कवि परम्परा के अनुसार छन्द-पूर्ति के लिए प्रयोजनानुरूप
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