Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ [१५०२ ३५० नेमिनाहचरिउ [१५०२] खण-मेत्तेण य पिययम-विओय-दुइ-जाय-हियय-संघट्टा । पत्ता पंचत्तं सा निस्सरणा सारसि वराइ ॥१५९।। [१५०३] एत्थंतरम्मि अवर-तलेण विविणंतरेसु परिभमिरो । करुण-सरं कुरुलंतो अ-नियंतो भारियं निययं ॥१६०॥ [१५०४] तस्सेव महा-तरुणो उवरि-पएसम्मि आगो जा ता । नियइ गय-जीवियव्वं निय-दइयं महियले पडियं ॥१६१॥ [१५०५] करुण-सरं व सुइरं कुरुलंतो सो वि सारस-वराओ ।. होऊण तीए सविहे पंचत्तं झत्ति पत्तो त्ति ॥१६२॥ [१५०६] अह एस मए कत्थ-वि सु दिट्ट-पुव्वोऽणुभूय-पुन्यो य । मरमाण-करुण-कुरुलिर-सारस-मिहुणस्स वुत्तंतो ॥१६३॥ [१५०७] इय चिंतंतो मुच्छा-निमीलियच्छो महीए पडिओ म्हि । पाविय-चेयन्नस्स य जाई-सरणं महुप्पन्नं ॥१६४॥ . [१५०८] अह - सरिस-सुह-दुहाए दइयाए विओइयस्स मह इमिणा।. किं जीविएण किं वा एयाए विसय-सेवाए ॥१६५॥ [१५०९] जीवियमिमं तु तीरइ न कइदिउँ अंकुडीए देहाओ । विसय-सुहं पुण पच्चकावयं विरहेण तीए मए ॥१६६॥ [१५१०] जइ तरुणीओ बहूओ ता किं मह निय-पियाए विरहेण । इय चिंतिरो य इय विलविरो य अवरम्मि दियहम्मि ॥१६७॥ [१५११] सिरि-आसाऊरीए पुरओ निय-नयर-पत्त-देवीए । __ अ-प्पक्क-घड-सएणं ण्हवणं तुह पिययमा करिही ॥१६८॥ १५०३. २. क, विवण'. १५०६. ३. क. कुरलिर. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450