Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 415
________________ ४०२ नेमिनाहचरित [१७९३ [१७९३] इय खमाविवि गयउ निय-ठाणि वेसायण-वाल-रिसि जाव ताव मंखलिहि पुत्तिण । पुट्ठम्मि कहेइ पहु तेय-लेस-उप्पत्ति जत्तिण ॥ नरु छठ-छठ-तव-कम्म-रउ आयावणि-गय-चित्तु । पारणगि वि कुम्मासमय पिंडि एग गिण्हंतु ॥ [१७९४] सलिल-पसइ वि एग पीयंतु छम्मास-अइक्कमिण तेय-लेस दिपंत पावइ । इय कहिरु गोसालयह कुम्म-गामि जय-वंधु विहरइ । कोदव-कूरह गोयरिण पायस-थालि-गएण । पुरिस मंस-भोयणिण तिल- निप्फत्ती-विसरण ॥ [१७९५] गहिय-कुग्गहु चत्त-पहु-सविहि गोसालउ पाव-मइ नियइ-वाउ जय-जणि पइद्विरु । सावस्थिहिं गंतु पुर- वहि-कुलाल-भवणम्मि चिट्ठिरु ॥ जिणवर-उवएसिय-विहिण तेय-लेस साहेइ । तीए परिक्खह कइ अवड- तडि इग दासि डहेइ । [१७९६] तयणु पसरिय-दप्प-तिमिरंधु मिलिऊण नेमित्तियह छण्ड पास जिण-सिस्स-देसहं । गहिऊण निमित्त-लवु अट्ट-अंगु सविहम्मि पुणु तह ॥ जिणु अ-जिणो वि अ-केवलि वि केवलि हउ ति भणंतु । भमइ महीयलि वालिसिहि सीसिहि सेविज्जंतु ॥ १७९३. ६. क. ख. छ? छट्ठ. १७९५. ३. नियति. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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