Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 425
________________ ४१२ ने मिनाहचरिउ [१८३३] इय विचिंतिर कुगइ - इ-विणिवायजाय हियय-संघट्ट धारिणि । जंतु - जाय-मण- खेय- कारिणि ॥ परिचितिउण सढेण । भय-विहर- मानस-पसर पंचत्तह पत्त जयअहमा एस व मरउ इय आणिवि वीहिहिं ओड्डविय वसुमइ तिण सुहडेण ॥ [१८३४] तयणु आगि वसिण पवरु कुल जाइ वि वालियह afe aftण घणावहिण किंचि - वि मुल्लु पयच्छिउण सन्घरि नीय सा वाल । नयनामुवि अ-कत तहिं चिट्ठर गुणिहि विसाल || Jain Education International 2010_05 परिमुणेवि विज्जाणुहाविण । तर्हि पसि संपत्त-मित्तिण ॥ [१८३५] दि सिट्टिण धूय बुद्धीए तह मूळा नामियहि निय-पिया पुत्ति त अप्पिय । तीए वि-हु सच्चविय धूय-मइण सा निव्त्रियप्पिय ॥ लोम्मि विवित्थरिय निरु पसरिय-गुरु-गुण-माल । अभिहाणिण वणि- वर- करण एह ज चंदणवाल ॥ [१८३६] कमिण तहि गुण-गरिम अ-सहंत गिरि - गरुयर-दोस-भरअ- नियच्छिर अमरिसिण अह अन्न मज्झहि गउ अ- नियंतर पुणु माणुसु वि चिट्ठा चंचल- दिट्ठि ॥ १८३६ १. क. किंमिण (?). मूल मूल छिड्डई पलोय । गमइ दियह हियएण सोयइ || भवणि धणावहु सिद्धि | For Private & Personal Use Only [ १८३३ www.jainelibrary.org

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