Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 434
________________ ४२१ १८७८] सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ [१८७५] वहु-पयारिहिं जणिवि अ-समाणु माहप्पु जिण-सासणह गरुय-हरिस-पब्भार-पुलइय । पडिवज्जहिं दिक्ख पहु- पुरउ सन्धि अहिलसिय-सुगइय ॥ तयणंतरु उप्पत्ति-वय- धुव-चयणाई गहेउ । कुणहिं दुवालस-अंग-मउ मुत्तु सिद्धि-सुह-हेउ ॥ [१८७६] अह स-हत्थिण गरुय-रिद्धीए ते तत्थ एक्कारस वि ठविय जिणिण वर-गणहरत्तणि । सा चंदणवाल पुणु गहिय-दिक्ख कय निय-पवत्तिणि ॥ अन्नेसि वि नर-नारियहं वहुयहं दिन्नु चरित्तु । वियरेविणु केसि पि पुणु सावय-धम्मु पवित्तु ॥ [१८७७] कणय-कमलिहिं निसिय-पय-पउमु सुर-चारण-थुय-चलणु दलिय-डमरु दुन्नय-विहंडणु। तइलोय-परिप्फुरिय- गरुय-मोह-माहप्प-खंडणु ॥ निच्चु वि पमुइय-सयल-जण- पयडिज्जंत-महम्मि । कम-जोगिण सिरि-वीर-जिणु पत्तउ रायगिहम्मि ॥ [१८७८] तत्थ सेणिय-निवइ उज्जाणपरिवालग-विन्नविउ वहल-हरिस-रोमंच-अंचिउ । जय कुंजरि आरुहिवि तणुहिं असम-सिंगार-संचिउ ॥ अभयकुमार-प्पमुह-निय- सार-लोय-संजुत्तु । वंदण-हेउ जय-प्पहुहु अवगह-महिहिं पहुत्तु ॥ १८७५. ५. क, पुरओ. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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