Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 436
________________ सत्तमभवि संखवृत्तंति महावीरचरिउ [१८८३] पत्तु गोयमु सहि सामिस्सु इयरे व पंच त्रिसमण गणहारिण भणिय गच्छमाण केवलिहिं परिसहं । नणु किं न नमह जिणनाह-पायहं || अह सिरि-वीर - जिणाहिविण भणिउं- म आसाएहि । गोयम केवलि-सहद्दं परिसप्पिर केवल एहि ॥ १८८६ ] [१८८४ ] तयणु गोयमु खेयमावन्तु परिचितइ नणु किह णु न उ मज्झता जिण वरिण तुल्ल- सरूवय हउं तुहुं वि जिण अट्ठावर जो थुणइ पच्छिमाहमवि हवइ केवलु । भणिउ कुणसु-मा खेउ निष्फलु ॥ जं होइसहुं नियाणि । तसु सिद्धि त्ति वियाणि ॥ Jain Education International 2010_05 [१८८५] इय सुविणु वयणु जिण-वरह अट्ठावय-गिरि-समुहु अह पुव्व चतहिं ता हि चsिes गिरि - सिहरि इग-दुग-तिग- मेहल-गइहिं इंदभूइ - गणहारि चलियउ । किस तर्हि नणु एहु वलियउ || इय परिचिंतिउ तेहिं । उ-छ- अ-तवएहिं ॥ [१८८६] कंद - तरु-फल-सुक्क - सेवाल पारणय-तणु-द्विहिं पेक्खतिर्हि गोयमह अट्ठावय-गिरि-गुरु- सिहरि चारण-लद्धि-समेउ | आरूढउ गोयमु खणिण पसरिय-गुरु-तव- तेउ || १८८५. ६. क. • चडिहइ. ८. क. गईहिं. पंच-पंच पंचसय-तवसिहि । समुहु समगु अ-णिमिसिहि नयणिहि || For Private & Personal Use Only કરદ www.jainelibrary.org

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