Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 446
________________ सत्तमभवि संखरांति महावीरचरिउ [१९२६] अह सुहम्म-स्सामि-संताणि जिणचंद-मुर्णिद-पयनाम - मंतु सुमरंतरण सिरि- हरिभद- मुणीसरिण इति श्री श्रीचंद्र सूरि-क्रम-कमल-भसल-श्र -श्री- हरिभद्रसूरि - विरचितं श्री - वीर चरितं समाप्तमिति ॥ कम जोगिण वहु-विहिहि सु-गइ - गइहि आयरिय-पवरिहि । पउम - भूसल - सिरिचंदरिहि ॥ so far - देसेण । चरिउ रइड लेसेण ॥ * * १९२९ ] [१९२७] इय सुविणु वीर - जिण-इंद अक्खाणउं संख-मुणि पडिवज्जिवि - निय-गुरुहू अहिगमिउण एक्कारस वि अंगई सुत्तत्थेहिं । भावेउण अप्पाणु जिण- कहिय-वत्थु-सत्येहिं ॥ [१९२८] अरिह-विंदहं करिवि सम्माणु मणि सिद्ध मंतई धरिवि सम्माणिवि गुरु-थविर अन्नि व तित्थयरत्त - फलपत्तउ अवराजिय- अमर अप्प - पंचमु वि गरुय - हरिसिण | पुव्व-उत्तु आएस सीसिण ॥ तित्थ नाह- सासणु पहाविवि । विउस खमग मुणि-वसह सेविवि ॥ ठाणई परिसीलेवि । मंदिर तणु मिल्लेवि ॥ [१९२९] जसमई वि-हु चरिय चारित सह संख - वंधव-सचिव- मुणिर्हि तियस- भाविण पहुत्तिय । अवराजिय- सुर-भवणि तम्मि चेव सुकय-प्पवित्तिय ॥ अह तेत्तीस अयर-ठिइ असम- हरिस-पसरेण । पालहिं पच वि ताई तर्हि पसरिय-सुकय-भरेण ॥ इति श्रीमन्नेमिजिन-राजीमल्योश्वत्वारो मनुष्य भवाश्चत्वारः सुरभवा इत्येवमष्टौ भवाः समाप्ता इति ॥ * Jain Education International 2010_05 * The portion from भसल to सहसिण अवलों (v. 1934 ) is partly blurred and illegible in . १९२६. ३. क. ख. जिणिचंद, ७. क. देसण, ख. दिसण. १९२९. ५. पवत्तिय. ४३३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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