Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 429
________________ ४१६ [१८४९ ] भइ - कप्पहिं नाह जर तुम्ह कुम्मास इहि एरिसय अह भुवण-पियामहिण हत्थ पसारि तक्खणिण चलणिहिं मणि- मंडिय-कणय नेउर जाय झडति ॥ नेमिनाहचरिउ ता पसीय महुवरि पडिच्छह । मुणिव सुद्धि वर-कमल- सच्छह ॥ भज्जवि नियल तडत्ति । [१८५० ] * अह पवढिय केस - पासाए परिमंडिय-सयल-तणु तक्काल समागरण धन्न तुम चिय जीए जय इय अइरेण वि हवसि तुहुं Jain Education International 2010_05 वियसंत- मुह-पंकयए तह पंच- दिणोण - छम्मासहुयउं तयणु गयणह पडिय घरि तहिं कंचन-बुद्धि | to स नराहिवि आवियइ जय-जय - रवि उज्धुट्ठि ॥ गरु दरिस - पुळयंकुरिय स-नरामर - तरुणि अवरे वि जाय पसिद्धि असेसि पुरि पाराविउ असरण - सरणु तीए दिन्न कुम्मास नाहह । अंति पारणु अ-वाहह || [१८५१] अमर- वियरिय-वत्थलंकार दुगुणि-हूय लायण चंदण | थुणिय स- सुर-सोहम्म- इंदिण || पहु पाराविउ एहु । असम-सुगइ सुह-मेहु || [१८५२] पम्मि तिहुयण-पहुहु पारणइ नट्टु गेउ वाइतु मंडहिं । नियय - विन्नाणु - चड्डहिं || जह - गुरु-गुण-मालाए । पहु चंदणवालाए || * The portion of the text from 1850 to 1884 is partly blurred in Ms. क. and hence only partly utilzable. [ १८४९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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