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[१८४९ ]
भइ - कप्पहिं नाह जर तुम्ह
कुम्मास इहि एरिसय अह भुवण-पियामहिण हत्थ पसारि तक्खणिण
चलणिहिं मणि- मंडिय-कणय नेउर जाय झडति ॥
नेमिनाहचरिउ
ता पसीय महुवरि पडिच्छह । मुणिव सुद्धि वर-कमल- सच्छह ॥ भज्जवि नियल तडत्ति ।
[१८५० ]
* अह पवढिय केस - पासाए
परिमंडिय-सयल-तणु तक्काल समागरण धन्न तुम चिय जीए जय इय अइरेण वि हवसि तुहुं
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वियसंत- मुह-पंकयए तह पंच- दिणोण - छम्मासहुयउं तयणु गयणह पडिय घरि तहिं कंचन-बुद्धि | to स नराहिवि आवियइ जय-जय - रवि उज्धुट्ठि ॥
गरु दरिस - पुळयंकुरिय स-नरामर - तरुणि अवरे वि जाय पसिद्धि असेसि पुरि पाराविउ असरण - सरणु
तीए दिन्न कुम्मास नाहह । अंति पारणु अ-वाहह ||
[१८५१]
अमर- वियरिय-वत्थलंकार
दुगुणि-हूय लायण चंदण | थुणिय स- सुर-सोहम्म- इंदिण || पहु पाराविउ एहु । असम-सुगइ सुह-मेहु ||
[१८५२]
पम्मि तिहुयण-पहुहु पारणइ
नट्टु गेउ वाइतु मंडहिं । नियय - विन्नाणु - चड्डहिं || जह
- गुरु-गुण-मालाए । पहु चंदणवालाए ||
* The portion of the text from 1850 to 1884 is partly blurred in Ms. क. and hence only partly utilzable.
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