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सत्तमभवि संखघुत्तंति महावीरचरिङ
[१८४५]
जूह - विरहिय- वर- करेणु व्व मुत्ताहल-धूल-नयणं सुधार - परिसित्त-वयणिय । सुमरेविणु निय- घरह कयइ करुणु सिसु - हरिण नमणिय || जणणिहि मरणिण पिउ-विरहि बंधुहुं विणु वि दुहत्त । बिलवर चंदणवाल गिरि- गरुय-सोय- संतत ॥
१८४८ ]
[१८४६]
अहह कह मह ताई दियहाई
सा चंपा -नयरि कहि दeिarer - निवु सु कहिं कह व सुरासुर-पहु-दुलह अट्टम भत्त हं अंति इहि
[१८४७ ]
अव जइ कु-वि अतिहि इह एज्ज ता तस्सु इहु निय-करिहिं सयल-दोस- परिमु वियरिष्पिणु दाणु हउं इय चिंतिरह महा - सहि सामि पहुत्तउ तयणु गुरु
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कत्थ ताईं स-सहियण - ललियई । कह ति सुहई निय-जणणि-जणिय || ते आहार असेस । किह कुम्मास - विसेस ॥
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कप्परं ।
करहुं अज्जु कय- किच्चु अप्परं ॥ चंदवाल हि । हरिसु फुरिउ तसु देहि ||
[१८४८ ]
अहह दमगह घरि कणय- वुट्ठि
मरु-मंडलिकप्प-तरु काम धेणु घर- अजिरि रोरह ।
जं एरिस-दस मह इय चिंतिर मन्नंत निरु चंदणवाल गहेवि निय
सविहि हुयउं आगमणु वीरहं || जगि कय- किच्चउं अप्पु | करि कुम्मासहं सुप्पु ॥
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