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सत्तमभवि संखवुत्तंति महावीरचरिउ
[१८५३]
अह धणावह-से द्वि-पमुहम्मि तहिं मिलियइ नयर-जणि भणिउ निवइ कंचुगि-मणंसिण । जह - नाह दहिवाहणह निवह धूय एह पाव-पुरिसिण ॥ केण-वि इह आणीय अह निय-अंकम्मि ठवेवि । वाह-जलाविल-नयण-जुय भणइ मिगावइ देवि ॥
[१८५४]
अज्जउत्तय एस धारिणि हि दहिवाहण-निव-पियह धूय सा उ मह भइणि सोयर । अह सेट्ठिहि पुरउ नर- वरिण पुट्ठ पुग्विल्ल-वइयर ॥ चंदण नेयाविय स-घरि कणगु गहिउमाढत्तु । ता सोहम्म-मुराहिविण पुरउ नरिंदह वुत्तु ।
[१८५५]
जह - नराहिव तुह न आलधु इहु कंचणु किंतु जसु कसु वि देइ चंदण तसु च्चिय । निय-चयणिण चंदण वि देइ कणगु तसु सेट्ठिणो च्चिय ॥ अप्पणु पुणु जय-पहु-पुरउ सु-थिरु करेविणु चित्तु । चंदणवाल पवज्जिसइ सिव-मुह-जणगु चरित्तु ॥
[१८५६] __ कन्न-अंतेउरि नरिंदेण अह चंदण परिखिविय सेटिणा वि सा पाव मूलय । उप्पाइय-मुहि-सयण- पमुह-सयल-जय-जंतु-सूलय ॥ सयलि वि नयरि विडंपिउण निब्भच्छेविणु हच्छु । निस्सारिय निय-घरह दुहिहुय जह वालय-मच्छु । १८५३. ३. मण्णसिय. ८. वाहु, जुब. १८५४. ५. क. वइयरु.
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