Book Title: Neminahacariya Part 1
Author(s): Haribhadrasuri, H C Bhayani, Madhusudan Modi
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 427
________________ ४१४ नेमिनाहचरिउ [१८४१ [१८४१] अह धणावह-सेट्टि अ-नियंतु घरि चंदणवाल परिफुरिय-असुहु पुच्छेइ परियणु । न य किं-पि कहेइ कु-वि तयणु मन्नु-जल-भरिय-लोयणु ॥ सेट्ठि गमावइ कह-वि दिण तिन्नि चउत्थ-दिणे उ।। तसु वुड्ढहं सयलु वि कहिउ निय-जिउ पणु मिल्लेउ । [१८४२] तयणु मूलह समुहु जपंतु अ-समंजस-बहु-विहई फुरिय-कोव-कंपंत-कंधरु । उग्घाडइ निय-करिहिं घरह दो-वि दाराई वणि-वरु ॥ जाता सारय-ससि-विमल- निय-गुण-गणिण विसाल । पेक्खइ अट्ठम-तव-मुसिय-तणु-लय चंदणवाल ॥ [१८४३] तयणु - धिसि घिसि देव्व तई इमह किह एरिस विहिय दस पाव-भूलि मूलि वि कहेरिसु । तुह चंदणवाल-कुमरियह उवरि संजाउ अमरिसु ॥ इय वोल्लंतउ पुणु पुणु वि पयडिय-अंसु-पवाहु । जोयइ भोयणु चंदणह जोग्गउं वुड्ढ-सणाहु ॥ [१८४४] न-उण किंचि वि विहि-निओएण तं तारिसु तर्हि समइ कुमरि-जोग्गु भोयणु पलोयइ । समोच्चिय नियवि पुणु सुप्प-कोणि कुम्मास ढोयइ ॥ अह लोहारह घरि गयउ नियल-विहाडण-हेउ । ता दहिवाहण-निव-दुहिय करि कुम्मास गहेउ ॥ १८४३. १. क. इगह. २. विह. ९. सणेहु. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450